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द्वारा कहे जाने पर शिष्य तहत्ति (अच्छा गुरुजी !) कहकर उस कार्य को करे । मगर उस पर तर्क-वितर्क न करे । यही सोचे- 'इस कार्य के पीछे क्या मकसद है ? यह तो गुरुदेव ही जानें' ॥९४॥ कारणविऊ कयाई, सेयं कायं वयंति आयरिया । तं तह सद्दहियव्वं भवियव्वं, कारणेण तहिं ॥१५॥ ___ शब्दार्थ : कारण को जानने वाले आचार्य भगवान् किसी
समय यह कौआ सफेद है, ऐसा कहते हैं तो उसे श्रद्धा पूर्वक मान लेना चाहिए, उस समय यह सोचे कि इसमें भी कोई कारण होगा ॥१५॥ जो गिण्हइ गुरुवयणं, भणंतं भावओ विसुद्धमणो ।
ओसहमिव पीज्जंतं, तं तस्स सुहावहं होइ ॥१६॥ ___ शब्दार्थ : भाव से विशुद्ध मन वाला जो शिष्य गुरु
महाराज के द्वारा वचन कहते ही अंगीकार कर लेता है तो उसके लिए वह वचन पालन औषध के समान परिणाम में सुखदायी होता है ॥९॥ अणुवत्तगा विणीया, बहुक्खमा निच्चभत्तिमंता य । गुरुकुलवासी अमुई, धन्ना सीसा इह सुसीला ॥१७॥ ___ शब्दार्थ : गुरु के आज्ञानुवर्ती विनीत, परम क्षमावंत, नित्यभक्तिमात्र, गुरुकुलवासी, गुरु को (एकाकी व कष्ट में) उपदेशमाला
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