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खरकरहतुरयवसहा, मत्तगइंदा वि नाम दम्मति । इक्को नवरि न दम्मइ, निरंकुसो अप्पणो अप्पा ॥१८३॥ ___ शब्दार्थ : 'गधा, ऊँट, घोड़ा, बैल और मदोन्मत्त हाथी
को भी युक्तिपूर्वक वश किया जा सकता है, मगर वश में नहीं किया जा सकता है तो एक निरंकुश स्वेच्छाचारी अपनी आत्मा को ही ।' आत्मा को ही नियंत्रित (दमन) करना वही सर्वश्रेष्ठ है ॥१८३॥ वरं मे अप्पा दंतो, संजमेण तवेण य । माहं परेहिं दम्मतो, बंधणेहिं वहेहि अ ॥१८४॥
शब्दार्थ : मैं स्वच्छन्दाचारी और असंयमी बनकर कुमार्ग में पड़कर दूसरों के द्वारा रस्सी आदि बंधनों और लकड़ी, चाबुक आदि के प्रहारों से काबू (दमित या नियंत्रित) किया जाऊँ; इससे तो बेहतर यही है कि मैं अपने आप (आत्मा) को संयम और तप के द्वारा स्वयं वश (दमन) करके रखू ॥१८४॥ अप्पा चेव दमेयव्वो, अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दंतो सुही होइ, अस्सिं लोए परत्थ य ॥१८५॥
शब्दार्थ : 'आत्मा का अवश्य ही दमन करना चाहिए । अपनी आत्मा (इन्द्रियों, मन, बुद्धि का) दमन (वश में) करना बहुत ही कठिन है । जिसने अपनी आत्मा का दमन उपदेशमाला
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