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गृहस्थसंबंधी कार्यों की चिंता किया करता है और शिथिलाचारी को वस्त्र आदि देता है अथवा उससे लेता है ॥३७३॥ धम्मकहाओ अहिज्जइ, घराघरि भमइ परिकहंतो य । गणणाइपमाणेण य, अइरित्तं वहइ उवगरणं ॥३७४॥ __शब्दार्थ : जो केवल लोगों के चित्त को प्रसन्न करने के लिए ही धर्म आदि वैराग्य की कथाएँ पढ़ता रहता है, घरघर धर्मकथाएँ करता फिरता है । साधुओं के लिए चौदह और साध्वियों के लिए पच्चीस चोलपट आदि उपकरणों की संख्या शास्त्र में कही है; किन्तु प्रमाण से अधिक संख्या में उपकरण संग्रह करके रखता है ॥३७४॥ बारस बारस तिण्णि य, काइयउच्चारकालभूमीओ ।
अंतो बहिं च अहियासि, अणहियासे न पडिलेहे ॥३७५॥ ___ शब्दार्थ : बारह लघुनीति की भूमियाँ, बारह बड़ीनीति
की भूमिया और तीन कालों में ग्रहण के योग्य तीन भूमियाँ, इस प्रकार उपाश्रय के अंदर और बाहर कुल मिलाकर सताईस स्थंडिल भूमियाँ हैं । यदि साधु में शक्ति हो तो दूर जाना योग्य है और दूर जाने की शक्ति न हो या सहन न हो सके तो नजदीक की भूमि में मलमूत्रादि का उत्सर्ग करना उचित है। मगर जो उस भूमि का उपयोगपूर्वक प्रतिलेखन नहीं करता, उसे पासत्थादि समझना ॥३७५॥ उपदेशमाला
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