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शब्दार्थ : मन, वचन और काया के योगों (व्यापारों) का निरोध करने वाला, शांत, इन्द्रियों का दमन करने में तत्पर, कषाय को ज्ञानबल से जीतने वाले मुनिराज को ९ प्रकार की ब्रह्मचर्यगुप्ति का आचरण करके ब्रह्मचर्य की रक्षा सावधानीपूर्वक करनी चाहिए । वे ९ प्रकार की गुप्तियाँ इस प्रकार हैं १. ब्रह्मचारीव्यक्ति, स्त्री, पशु, नपुंसक आदि कामांधजीवों से रहित निर्दोष एकांत स्थान में रहे । २. स्त्रीसंबंधी रूप - शृंगार की कथा न करे अथवा केवल स्त्रियों के सम्मुख धर्मकथा भी न करे । ३. जिस स्थान या आसन आदि पर स्त्री बैठी हो उस स्थान या आसनादि पर दो घड़ी तक न बैठे । ४. स्त्रियों की आँखें, मुख, हृदयादि अंगोपांगों का रागबुद्धि से निरीक्षण न करे । ५. चारित्र - ग्रहण करने के पूर्व गृहस्थाश्रम में की हुई कामक्रीड़ा का कदापि स्मरण न करे । ६. स्त्रियों का विरह - विलाप आदि कान देकर न सुने । ७. गले तक ठूंस-ठूंसकर अति - भोजन न करे । ८. बहुत प्रकार का स्निग्ध पौष्टिक, गरिष्ठ, स्वादिष्ट भोजन सदा न करें और ९. शरीर को स्नान, विलेपन, शृंगार आदि से न सजाए; ताकि उससे खुद को या दूसरे को कामोत्तेजना न जागे । इस । तरह इन ९ दूषणों से दूर रहकर मुनि ब्रह्मचर्य का यथार्थ पालन करे ॥३३४-३३५-३३६॥
गुज्झोरुवयण कक्खोरु अंतरे, तह थणंतरे दठ्ठे । साहरइ तओ दिट्ठि, न बंधइ दिट्ठिए दिट्ठि ॥ ३३७ ॥
उपदेशमाला
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