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आलम्बन को लेकर कहते हैं कि मरुदेवी माता ने कौन-सा तप-संयम का कष्ट उठाकर अपने अंगों को क्षीण किया था ? फिर भी जैसे वे सिद्धगति पा गयीं; पहले किसी भी प्रकार के धर्म का आचरण किये बिना ही श्रीऋषभदेव की माता श्रीभगवती मरुदेवी ने मोक्ष प्राप्त कर लिया था; वैसे ही हम भी वधादि के विपाक (प्रतिफल) का अनुभव किये बिना और तप-संयम आदि धर्मानुष्ठान किये बिना ही मोक्षपद प्राप्त कर लेंगे ॥१७९॥ किं पि कहिं पि कयाई, एगे लद्धीहि केहि वि निभेहिं । पत्तेअबुद्धलाभा, हवंति अच्छेरयब्भूया ॥१८०॥
शब्दार्थ : कई प्रत्येकबुद्ध पुरुष किसी समय भी कहीं भी बूढ़े बैल आदि वस्तु को देखकर, तदावरणकारक कर्मों के क्षयोपशम से या लब्धि से या किसी भी निमित्त से विषयभोग से विरक्त होकर तत्काल स्वतः प्रतिबुद्ध होकर स्वयमेव दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं । ये प्रत्येक बुद्ध जो अनायास ही मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं यह तो आश्चर्यभूत है ॥१८०॥ ____ यानी ऐसे नमूने तो विरले ही मिलते हैं। इसीलिए ऐसे
आलंबन की ओट में आत्मसाधना के प्रति उपेक्षा करना उचित नहीं है। बल्कि विशेष सावधान होकर धर्माचरण में प्रयत्न करना चाहिए । क्योंकि इस जन्म में बोये हए उत्तम धर्मबीज का ही भविष्य में (अगले जन्म में) उत्तम फल उपदेशमाला
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