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विडंबनाओं को नहीं समझते । क्योंकि विषयासक्त जीव विषय को ही सारभूत गिनते हैं । परंतु लघुकर्मी जीव सिर्फ स्वप्न को देखने मात्र से अनायास ही प्रतिबुद्ध हो जाते हैं; जैसे पुष्पचूला को अनायास प्रतिबोध हुआ था । पुष्पचूला नाम की रानी ने स्वर्ग और नरक का स्वरूप स्वप्न में देखकर ही विषयसुख से विरक्त होकर संयम अंगीकार किया था ||१७०॥ ऐसे भी बहुत से जीव होते हैं । यहाँ पुष्पचूला की कथा दे रहे हैं
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जो अविकलं तवं संजमं च, साहु करिज्ज पच्छा वि । अन्नियसुओ व्व सो, नियगमट्ठमचिरेण साहेइ ॥ १७१ ॥
शब्दार्थ : 'जो वृद्धावस्था में भी प्रतिबोध प्राप्त करके अखंड तप-संयम की साधना करता है, वह आचार्य अणिकापुत्र की तरह अपनी अक्षयसुख की साधना का अर्थ शीघ्र ही अल्पकाल में सिद्ध कर लेता है' ॥ १७१ ॥ अर्थात् - जो यौवनावस्था में विषयासक्त हो, किन्तु जिंदगी के अंतिम समय में धर्माचरण कर लेता है, वह अपने आत्महित को सिद्ध कर सकता है । यहाँ ऊपर की कथा में वर्णित अणिकापुत्र का बाकी रहा हुआ पूर्वजीवन का चरित्र-चित्रण कर रहे हैं
उपदेशमाला
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सुहिओ न चयइ भोए, चयइ जहा दुक्खओत्ति अलियमिणं । चिक्कणकम्मोवलित्तो, न इमो न इमो परिच्चयई ॥ १७२ ॥
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