Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान १ उद्देशक १
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अवस्था में दो दृष्टियाँ हो सकती हैं - मिथ्यादृष्टि और सम्यग् दृष्टि। जबकि पर्याप्त अवस्था में केवल एक मिथ्यादृष्टि ही होती है। जिस दण्डक में जितनी दृष्टियाँ पाई जाती हैं उसमें वर्गणाएं भी उतनी हो सकती हैं।
इस प्रकार सूत्रकार ने नैरयिक आदि की वर्गणाएं बताते हुए उनमें सामान्यतः पाये जाने वाले एकत्व का दिग्दर्शन कराया है।
एगा कण्हपक्खियाणं वग्गणा, एगा सुक्कपक्खियाणं वग्गणा, एगा कण्हपक्खियाणं णेरइयाणं वग्गणा, एगा सुक्कपक्खियाणं णेरइयाणं वग्गणा, एवं चउवीस दंडओ भाणियव्यो। एगा कण्हलेस्साणं वग्गणा, एगा णीललेस्साणं वग्गणा, एवं जाव सुक्कलेस्साणं वग्गणा। एगा कण्हलेस्साणं णेरइयाणं वग्गणा जाव काउलेस्साणं णेरइयाणं वग्गणा, एवं जस्स जइ लेस्साओ, भवणवइ वाणमंतर पुढवि आउ वणस्सइकाइयाणं य चत्तारि लेस्साओ, तेऊ वाऊ बेइंदिय तेइंदिय चउरिदियाणं तिण्णि लेस्साओ, पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं, मणुस्साणं छल्लेस्साओ, जोइसियाणं एगा तेउलेस्सा, वेमाणियाणं तिण्णि उवरिम लेस्साओ। एगा कण्हलेस्साणं भवसिद्धियाणं वग्गणा, एगा कण्हलेस्साणं अभवसिद्धियाणं वग्गणा, एवं छस्सु वि लेस्सास दो दो पयाणि भाणियव्वाणि। एगा कण्हलेस्साणं भवसिद्धियाणं णेरइयाणं वग्गणा, एगा कण्हलेस्साणं अभवसिद्धियाणं णेरइयाणं वग्गणा, एवं जस्स जइ लेस्साओ तस्स तइ भाणियव्वाओ जाव वेमाणियाणं। एगा कण्हलेस्साणं सम्मद्दिट्टियाणं वग्गणा, एगा कण्हलेस्साणं मिच्छद्दिट्ठियाणं वग्गणा, एगा कण्हलेस्साणं सम्म-मिच्छहिट्ठियाणं वग्गणा, एवं छस्सु वि लेस्सासु जाव वेमाणियाणं जेंसिं जइ दिट्ठीओ। एगा कण्हलेस्साणं कण्हपक्खियाणं वग्गणा, एगा कण्हलेस्साणं सुक्कपक्खियाणं वग्गणा, जाव वेमाणियाणं जस्स जइ लेस्साओ, एए अट्ठ चउवीसदंडया ॥९॥
कठिन शब्दार्थ - कण्हपक्खियाणं - कृष्ण पाक्षिक, सुक्कपक्खियाणं - शुक्ल पाक्षिक।
भावार्थ - कृष्ण पाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है। शुक्ल पाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है। कृष्ण पाक्षिक नैरयिकों की वर्गणा एक है। शुक्ल पाक्षिक नैरयिकों की वर्गणा एक है। इस प्रकार . चौबीस ही दण्डकों में कथन करना चाहिए।
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