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अनन्वयः [न० त०] 1. बंध का अभाव 2 (सा० शा०) । अनम्याश-स (वि.) [ न० ब० ] जो निकटस्थ न हो,
एक अलंकार जिसमें किसी वस्तु की तुलना उसी से दूरस्थ आदि °समित्य (वि०) दूर से ही विदकने वाला की जाय-और उसको ऐसा बेजोड़ सिद्ध किया जाय सिद्धा। जिसका कोई और उपमान ही न हो। जैसे | अनभ्र (वि.) [ न० ब०] बिना बादलों के, इयमनभ्रा गगनं गगनाकारं सागरः सागरोपमः, रामरावणयोर्यद्धं वृष्टि:--यह तो बिना ही बादलों के आकाश से वृष्टि रामरावणयोरिव ।।
होने लगी-अर्थात् अप्रत्याशित या आकस्मिक घटना । अनप (वि.) [न० ब०] जलहीन (जैसे क्षुद्रजलाशय)। | अनमः [न० त०] वह ब्राह्मण जो दूसरों को न तो नमस्कार अनपकारणम्) [न० त०] 1 चोट न पहुंचाना 2 सुपुर्दगी करता है और न उनके नमस्कार का उत्तर देता है। अनपकर्मन् का अभाव 3 (कानून में) ऋण न | अनमितम्पच (=मितंपच) (वि.) [ न० त०] कंजस, अनपक्रिया ) चुकाना।
मक्खीचूस । अनपकारः (न० त०) अहित का अभाव-कारिन् (वि.) । अनम्बर (वि०) [ न० ब० ] वस्त्र न पहने हुए, नंगा-- __ अहित न करने वाला, निर्दोष ।
बौद्ध भिक्षु । अनपत्य (वि.) [न० ब०] सन्तानहीन, निस्सन्तान, | अनयः [ न० त०] 1 दुर्व्यवस्था, दुराचरण, अन्याय, जिमका कोई उत्तराधिकारी न हो।
अनीति 2 दुर्नीति, दुराचार, कुमार्ग 3 विपत्ति, दुःख, अनपत्रप (वि०) [ न० ब० ] घृष्ट, निर्लज्ज।
मनु० १०।९५, 4 दुर्भाग्य, बुरी किस्मत 5 जूआ अनपभ्रंशः [ न० त०] वह शब्द जो भ्रष्ट न हो, व्याकरण | खेलना। की दृष्टि से शुद्ध शब्द।
अनर्गल (वि.)न० ब० स्वेच्छाचारी, अनियंत्रित-तुरंगअनपसर (वि०) [ न० ब०] जिसमें से निकलने का कोई मुत्सृष्टमनर्गलम्-रघु० ३।३९ 2 जिसमें ताला न
मार्ग न हो, अन्यायोचित, अक्षम्य,-रः बल पूर्वक लगा हो। अधिकार करने वाला।
अनर्घ (वि.) [न० ब०] अनमोल, अमूल्य, जिसके मूल्य अनपाय (वि.) [ न० ब० ] 1 हानि या क्षय से रहित, का अनुमान न लगाया जा सके,-घः गलत या अनु
2 अनश्वर, अक्षीण, अक्षयी-प्रणमन्त्यनपायमुत्थितम् चित मूल्य । (चन्द्रम्) कि० २।११,-यः [ न० त०] 1 अन- अनर्घ्य (वि०) [न० त०] अमूल्य, सर्वाधिक सम्मान्य । श्वरता, स्थायिता 2 शिव ।
अनर्थ (वि०) [न० ब०] 1 अनुपयुक्त, निकम्मा 2 भाग्यअनपायिन् (वि.) [अनपाय+णिनि] अनश्वर, दृढ़, स्थिर, हीन, सुखरहित 3 हानिकारक 4 अर्थहीन, निरर्थक,
अचुक, सतत टिकाऊ, अचल-प्रसादाभिमुखे तस्मिन् -र्थः [न० त०] 1 उपयोग या मूल्य का न होना 2 श्रीरासीदनपायिनी-रघु० १७१४६, ८1१७, अनपा- निकम्मी या अनुपयुक्त वस्तु 3 विपत्ति, दुर्भाग्य--- यिनि संशयमे गजभग्ने पतनाय वल्लरी-कु० ४।३१ ।
रंध्रोपनिपातिनोऽर्थाः-श० ६, छिद्रेष्वना बहलीअनपेक्ष-क्षिन् (वि०) [ न० ब०, न० त०] 1 असाव- भवन्ति 4 अर्थ का न होना, अर्थ का अभाव। सम०
घान 2 लापरवाह, परवाह न करने वाला, उदासीन -कर (वि.) [स्त्री०-री अनिष्टकर, हानिकर। 3 स्वतंत्र, दूसरे की अपेक्षा न रखने वाला, 4 निष्पक्ष | अनर्थ्य, अनर्थक (वि०) [न० त०] 1 अनुपयुक्त, निरर्थक 5 असंबद्ध;-क्षा [ न० त०] असावधानी, उदा- 2सारहीन 3 अर्थ हीन 4 लाभ रहित 5 दुर्भाग्यपूर्ण, सीनता-क्षम् (क्रि० वि०)विना ध्यान के, स्वतंत्र रूप --कम् अर्थहीन या असंगत बात । से, परवाह न करते हुए, बेपरवाही से।
अनर्ह (वि.) [न० त०] 1 अनधिकारी, अयोग्य 2 अनअनपेत (वि.) [न० त०] 1 जो दूर न गया हो, बीता प युक्त (संब० के साथ या समास में)।
न हो 2 विचलित न हुआ हो (अपा के साथ) अर्था- अनलः नास्ति अल: पर्याप्तिर्यस्य-न० ब०] 1 आग 2 अग्नि दनपेतम् अर्थ्यम्-सिद्धा० 3 अविरहित, सम्पन्न- या अग्निदेवता 3 पाचनशक्ति 4 पित्त । सम० ऐश्वर्यादनपेतमीश्वरमयं लोकोऽर्थत: सेवते-मद्रा० – (वि.) [अनलं द्यति] 1 गर्मी या आग को नष्ट
करने वाला, 2=दे० अग्निद –दीपन (वि.) जठअनभिज्ञ (वि.) [ न० त०] अनजान, अपरिचित, राग्नि या पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला,--प्रिया अग्नि
अनभ्यस्त (प्रायः संब० के साथ) ज्ञः कैतवस्य-श. की पत्नी स्वाहा,--सादः क्षुधा का नाश, अग्निमांद्य । ५, ज्ञः परमेश्वरगृहाचारस्य—महा० २।
अनलस (वि.) [न० त०] 1 आलस्यरहित, चुस्त, परिश्रमी अनम्यावृत्ति (स्त्री०) [न० त० ] पुनरुक्ति का अभाव- 2 अयोग्य, असमर्थ ।। मनागनभ्यावृत्त्या वा कामं क्षाम्यतु यः क्षमी-शि० अनरुप (वि.) [न० त०] 1 बहुसंख्यक 2 जो थोडा न २०४३
| हो, उदाराशय, उदार (जैसा कि मनु आदि) अधिक,
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