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अध्यासः, अध्यासनम् [ अधि+आस+घञ, ल्युट् वा]। प्रायश्चित्तिः–प्रायश्चित्त, पापनिष्कृति, -मीमांसा
1 ऊपर बैठना, अधिकार में करना, प्रधानता करना 2 जैमिनि की पूर्वमीमांसा । आसन, स्थान।
अध्वर्यः [अध्वर+क्यच्+यच] 1 ऋत्विक, पुरोहित, पारिअध्यासः [अधि+आस्+घञ] 1 मिथ्या आरोपण, मिथ्या भाषिक रूप से 'होतृ' 'उद्गातृ तथा 'ब्रह्मन्' से अति
ज्ञान, दे० 'अध्यारोप' को भी 2 'परिशिष्ट 3 कुचलना रिक्त ऋत्विक, 2 यजुर्वेद। सम० -वेवः यजर्वेद । -पादाध्यासे शतं दम:-या०२।२१७।
अध्याति अध्वग। अध्याहारः । [अधि |-आ+ह+घञ, ल्युट् वा] 1 अध्वान्तम् [न० त०] संध्या, अन्धकार | अध्याहरणम् न्यूनपदता को पूरा करना 2 तर्क करना, |
का पूरा करना 4 तक करना, | अन् (अदा० पर० सेट्) [ अनिति, अनित 11 सांस लेना, अनुमान करना, नई कल्पना, अन्दाजा या
2 हिलना, जीना, प्रेर० आनयति, सन्नन्त० अनिनिअनुमान ।
षति । (दिवा. आ०) जीना, 'प्र' उपसर्ग के साथ---- अध्युष्ट्रः [ अधिगतः उष्ट्र वाहनत्वेन ] ऊंटगाड़ी।
जीवित रहना-यदहं पुनरेव प्राणिमि—का० ३५, अध्यूढः [ अधि। वह+क्त ] उठा हुआ, उन्नत,-हः ।
प्राणिमस्तव मानार्थ भामि० ४।३८ । शिव-ढा वह स्त्री जिसके पति ने उसके रहते हुए | अनः [ अन+अच1 साँस, प्रश्वास । दूसरा विवाह कर लिया हो दे० अघिविन्ना।
अनंश (वि.) [न० ब० ] जिसका पैतृक सम्पत्ति पर कोई अध्येवणम् [ अधि+इष् + ल्युट् ] किसी कार्य को करने की
अधिकार न हो। प्रेरणा देना, विशेषतः आचार्य के द्वारा, अर्थात् आदर
अनकदंदुभिः =दे० आनकदुंदुभिः । पूर्वक किसी कार्य में प्रवृत्त करना, –णा निवेदन, |
अनक्षः (वि०) [न० ब०] दृष्टिहीन, अंधा । याचना।
अनक्षरः (वि.) [न० ब०] 1 बोलने में असमर्थ, मुक, अध्रुव (वि०) [न० त०] 1 अनिश्चित, सन्दिग्ध 2 |
गंगा 2 अशिक्षित 3 बोलने के अयोग्य, रम् दुर्दचन अस्थिर, चंचल, पृथक्करणीय, ----बम अनिश्चितता,
गाली, निन्दा या अपशब्द, (क्रि० वि०) बिना शब्दों यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रवाणि निषेवते, धूवाणि
के~ °व्यंजित दौह देन रघु० १४।२६।। तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव च ।
अनग्निः [न० त०] 1 अग्नि का न होना, अग्नि के बजाय अध्वन् (पु.) [अद् + क्वनिप् दकारस्य धकारः ] 1 रास्ता, कोई दूसरी वस्तु--यदधीतमविज्ञातं निगदेनैव शब्द्यते, सड़क, मार्ग, नक्षत्र मार्ग २(क) दूरी, स्थान (चलकर
अनग्नाविव शुष्कंधो न तज्ज्वलति कहिचित । नि० पार किया गया और पार करने के निमित्त)-अपि 2 अग्नि का अभाव, (वि.) [न० ब०] 1 जिसे लंधितमध्वानं बुबुधे न बुधोपमः-रघु० ११४७, उल्लं. अग्नि की आवश्यकता न हो—विदधे विधिमस्य नैष्ठिघिताध्वा-- मेघ० ४५ (ख) यात्रा, भ्रमण, प्रसरण, के यतिभिः सार्धमनग्निमग्निचित् --रघु० ८।२५, 2 प्रस्थान-नैकः प्रपद्येताध्वानम् मनु०४।६०, 3 समय अग्निहोत्र न करने वाला, 3 श्रौतस्मात कर्म से विर(काल), मूर्तकाल 4 आकारा, अन्तरिक्ष 5 उपाय हित, अधामिक 4 अग्निमांद्य रोग से ग्रस्त 5 अविसाधन, प्रणाली 6 आक्रमण । सम० -ग: 1 मार्ग
वाहित । चलने वाला, यात्री, बटोही---सन्तानकतरुच्छाया
अनघ (वि.) [न० ब०] 1 निष्पाप, निरपराध-अवमि सुप्तविद्याघराध्वगम्-कु० ६।४६ (गामिन्), 2 चनामनति-रघु० १४१४०, 2 निर्दोष, सुन्दर, ऊँट 3 खच्चर 4 सूर्य, -गा गंगा, --पतिः सूर्य,
--रूपमनघम्-श० २।१३, यस्य ज्ञानदयासिंघोरगा-रयः 1 यात्रा करने के लिए गाड़ी 2 हरकारा जो घस्यानघा गुणा:-अमर० 3 सकुशल, घातरहित, चलने में चतुर हो।
अक्षत, सुरक्षित--कच्चिन्मृगीणामनघा प्रसूति:-रघु. अध्वनीन (वि.) [अध्वन+ख, यत् वा यात्रा पर जाने ५।७, मृगवघूर्यदा अनघप्रसवा भवति–श०४, जिसका मध्वन्य । के योग्य, तेज चलने वाला—क्षिप्रं ततोऽध्वन्य- प्रसव सकुशल हो चुका हो या जो प्रसव के पश्चात्
तुरंगयात्री-भट्टि० २।४४,--नः, -न्यः तेज सकुशल शय्या पर लेटी हो 4 पवित्र, निष्कलंक,-- चलने वाला यात्री, बटोही।
1 सफेद सरसों, 2 विष्णु या शिव का नाम । अध्वरः [अध्वानं सत्पथं राति–इति अध्वन+रा+क | अनसकुश (वि.) [ न० ब०] 1 उदंड, उच्छृखल 2
अथवा न वरति कुटिलो न भवति नच +व+अच, (कवि की भांति) स्वच्छन्द । ध्वरतिहिंसाकर्मा तत्प्रतिषेधो निपातः अहिंस्र-निरु०1/ अनङ्ग (वि.) [न० ब०] देहरहित, अशरीरी, आकृतिहीन यश, धार्मिक संस्कार, सोमयाग, तमध्वरे विश्वजिति त्वमनंगः कथमक्षता रतिः-कु. ४१९, -गः (देहर
-रघु० ५।१, ---२ः, -रम् आकाश या वायु ।। हित), कामदेव -गम 1 आकाश, वायु, अन्तरिक्ष, सम० -दीक्षणीया अध्वर संबंधी संस्कार, इसी प्रकार । 2 मन । सम० -क्रीडा कामक्रीडा, -लेख-मदन
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