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लेख, प्रेमपत्र, लेखक्रिययोपयोगं (बजन्ति) कु. २७, सोता है,—पार (वि.) असीम विस्तारयुक्त, निस्सीम, °शत्रुः, °असुहृत् आदि-शिव जी के नाम ।
-रं किल शब्दशास्त्रम्-पंच० १,-रूप (वि०) अनञ्जन (वि.)[न.ब.] बिना अंजन, वर्णक या काजल अगणित रूपवाला, विष्णु,-विजयः युधिष्ठिर का
के--नेत्रे दूर मनञ्जने-सा० द०,-नम् 1 आकाश, शंख-भग० श२६ ।
वातावरण 2 परब्रह्म विष्णु या नारायण (पं. भी)। | अनन्तर (वि०) नास्ति अंतरं यस्य-न० ब०] 1 अन्तरअनडह, (पुं०) [ अनः शकटं वहति–नि० ] [ अनड्वान्, रहित, सीमारहित 2 जिसके बीच देश काल का ड्वाही, डुद्भवाम् आदि० ] 1 बैल, सांड 2 वृष
कोई अन्तर न हो, सटा हुआ, लगा हुआ 3 संसक्त, राशि, ही (अनड्वाही) गाय ।
पड़ोस का, बिल्कुल मिला हुआ, निकटवर्ती (अपादान अनति (अव्य०) [न० त०] बहुत अधिक नहीं, 'अनति'
के साथ) ब्रह्मावर्तादनन्तरः-मन० २।१९, 4 अनुसे आरम्भ होने वाले समस्त पदों का विश्लेषण 'अति'
वर्ती, सन्निहित होना (समास में) 5 अपने से ठीक से आरम्भ होने वाले शब्दों की भांति किया जा
नीचे के वर्ण का,---रम् 1 संसक्तता, सन्निकटता 2 सकता है।
ब्रह्म, परमात्मा, रम् (अव्य०) तुरन्त बाद, पश्चात् अनतिविलंबिता--विलम्ब का अभाव, व्याख्यानदाता का 2 (संबंधवाचकता की दृष्टि से) बाद में, (अपादान एक गुण धाराप्रवाहिता, ३५ वाग्गुणों में से एक।।
के साथ )-पुराणपत्यापगमानन्तरम्-रघु० ३७, अनद्यतन वि० [स्त्री०--नी] [न० त०] आज या चालू
गोदानविधेरनन्तरम्-३।३३ ३६,२,७१। सम-ज दिन से संबंध न रखने वाला, पाणिनि का एक पारि
या-जा 1 क्षत्रिय या वैश्य माता में, अपने से ठीक भाषिक शब्द जो लङ और लट् लकार के अर्थ को
ऊपर के वर्ण के पिता के द्वारा उत्पन्न सन्तान-मनु० प्रकट करता है, --नः जो चाल दिन न हो, अतीताया
१०।४ 2 'तरपरिया' भाई बहन, (-जा) छोटी या बड़ी रात्रः पश्चार्थेन आगामिन्या रात्रे पूर्वार्धन सहितो बहन-अनुष्ठितानंतरजाविवाहः-रघु० ७।३२ इसी दिवसोऽनद्यतन:-सिद्धा०, तद्भिन्नः कालः ।
प्रकार °जात। अनधिक (वि.) [न० त०]1जो अधिक न हो, 2 असीम | अनन्तरीय (वि.) [अनंतर+छ] वंशक्रम में ठीक बाद का। पूर्ण।
अनन्य (वि.) [न० त०] 1 अभिन्न, समरूप, वही, अद्विअनधीनः [न० त०] अपनी इच्छा से कार्य करने वाला तीय 2 एकमात्र, अनुपम, जिसके साथ और दूसरा न स्वाधीन बढ़ई, कौटतक्ष ।
हो 3 अविभक्त, एकाग्र, अन्य की ओर न जाने वाला, अनध्यक्ष (वि०) [न० त०] 1 अप्रत्यक्ष, अदृश्य 2 शासक -अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते-भग. हीन।
९।२२, समास में 'अनन्य' शब्द का, अनुवाद किया जा अनध्यायः [न० त०] न पढ़ना, पढ़ाई में विराम, बह
सकता है- 'दूसरे के द्वारा नहीं और किसी ओर लग्न अनध्ययनम् समय जब कि इस प्रकार का विराम होता
या निदेशित नहीं' 'एकाश्रयी'। सम-गतिः (स्त्री०) है या होना चाहिए, एक अवकाश का दिन (°दिवसः)
एकमात्र सहारे वाला-अनन्यगतिके जने विगतपातके अद्य शिष्टानध्यायः--उत्तर० ४-किसी पूज्य अतिथि |
चातके-उद्भट;-चित्त,-चित,-चेतस्, --मनस, के सम्मान में दिया गया अवकाश ।
-मानस,-हृदय (वि.) एकाग्रचित्त, जिसका मन अननम् [अन्+ल्युट्] सांस लेना, जीना।
और कहीं न हो;-जः,-जन्मन् (पुं०) कामदेव, अननुभावुक (वि.) जो समझने के अयोग्य हो।
प्रेम का देवता—मा मूमुहन्खलु भवंतमनन्यजन्मा-मा० अनन्त (वि.) [नास्ति अन्तो यस्य न० ब०] अन्तरहित, २३२,--पूर्वः वह पुरुष जिसके और कोई स्त्री न हो; अपरिमित, निस्सीम, अक्षय,-रत्नप्रभवस्य यस्य
(--) कुमारी,, बिनब्याही स्त्री-रघु० ४१७; कु० ११३,--तः 1 विष्णु की शय्या शेषनाग, कृष्ण,
--भाज् (वि.) किसी और व्यक्ति की ओर लगाव न बलराम, शिव, नागों का पति वासुकि 2 बादल 3 रखने वाला;-अनन्यभाजपतिमाप्नुहि-कु० ३।६३; कहानी, 4 चौदह ग्रन्थियों से युक्त रेशमी डोरा जो
-विषय (वि.) किसी और से संबंध न रखने वाला, अनंत चतुर्दशी के दिन दक्षिण भुजा पर बांधा जाता
-वृत्ति (वि.) 1 वैसे ही स्वभाव का 2 जिसकी है;-ता 1 पृथ्वी (अन्तहीन) 2 एक की संख्या 3
दूसरी जीविका न हो 3 एकनिष्ठ मनोवृत्ति वाला; पार्वती 4 शारिवा, अनंतमूल, दूर्वा आदि पौधे;
-सामान्य, साधारण (वि०) दूसरे से न मिलने -तम् 1 आकाश, वातावरण 2 असीमता 3 मोक्ष 4 वाला, असाधारण, ऐकान्तिक रूप से लगा हुआ, बेलपरब्रह्म। सम०--तृतीया वैशाख, भाद्रपद और गाव, अनन्यनारी सामान्यो दासस्त्वस्याः पुरूरवाःमार्गशीर्ष मास की शुक्लपक्ष की तीज-वृष्टिः शिव, विक्रम० ३।१८ राजशब्द:--रघु० ६।३८;-सदृश इन्द्र, देवः 1 शेषनाग 2 नारायण जो शेषनाग के ऊपर | (वि.) [स्त्री०-शी] बेजोड़, अनुपम ।
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