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बुद्धि और अनुभूति
आधुनिक युग वैज्ञानिक एवं बौद्धिक युग है । जो भी कहा जाता है, उसे बुद्धि से परखा जाता है और तर्क की कसौटी पर कसा जाता है लेकिन बुद्धि खतरा है। दो खतरे
दुनिया में दो खतरे हैं- शस्त्र और शास्त्र | इस दुनिया में मनुष्य ने जब से शस्त्र का आविष्कार किया है तभी से वह भयभीत है । जैसे-जैसे शस्त्रों का विकास हुआ है मनुष्य का भय भी बढ़ा है । अणुशस्त्र वालों को जाने कब कुबुद्धि आ जाए और कब प्रलय हो जाए । मनुष्य भय से त्रस्त है, अरक्षित है कि जाने कब क्या हो जाए।
दूसरा खतरा है शास्त्र । शास्त्र में केवल एक मात्रा का ही फर्क है | “शासनात् त्राणशक्तेश्च शास्त्रमित्युच्यते बुधैः । शास्त्र के दो लाभ बताये जाते हैं कि एक तो वह अनुशासन करता है और दूसरा लाभ यह है कि वह त्राण देता है, रक्षा करता है | शस्त्र भी त्राण देने के लिए ही बनाए गये थे । हमारी बौद्धिकता शास्त्र और शस्त्र--दोनों में है; क्योंकि बौद्धकता के बिना शस्त्र का भी विकास नहीं होता है। जैसे-जैसे मनुष्य में बुद्धि का विकास होता गया है वैसे-वैसे शस्त्रों का भी विकास हुआ है । डेकन कालेज, पूना के पुरातत्त्व विभाग में पत्थर के शस्त्रों का इक्कीस लाख वर्ष पुराना इतिहास देखा
और आधुनिक युग के उद्जन बमों के बारे में भी पढ़ा-सुना है | शस्त्रों का यह विकास बुद्धि के विकास के साथ-साथ हुआ है । खतरा है बुद्धि
बुद्धि बहुत बड़ा खतरा है । पांडित्य और बौद्धिकता का खतरा साक्षात् एवं प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता । शस्त्र का खतरा दिखाई देता है, शास्त्र का नहीं। इसीलिए शंकराचार्य ने कहा था कि 'अन्य वासनाओं के खतरे से बचना आसान है किन्तु शास्त्र-वासना से मुक्त होना सम्भव नहीं।' धर्म का तेज कम होने का मुख्य कारण है—-बुद्धि का आग्रह । शब्दों की पकड़ भारी होती है । अनेक व्यक्ति शब्द की भावना या हार्द को नहीं समझतेउसकी आत्मा को नहीं पकड़ पाते । केवल शब्दों की छीछालेदर करने वाले आत्मा तक कभी नहीं पहुंचे, स्थूल में ही लगे रहे ।
चार पंडित काशी से बारह वर्ष पढ़कर आए किन्तु केवल शब्द रटे, हृदय तक
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