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समस्या को देखना सीखें
में निर्णय करना अब निरर्थक है । वास्तव में दोनों के सिद्धांतों की विशेषता का अब कोई महत्त्व नहीं । पृथ्वी घूमती है और सूर्य स्थिर है या पृथ्वी स्थिर है और सूर्य घूमता है-इन दोनों का कोई अर्थ नहीं है। कोपरनिकस की महान् खोज आज केवल इतने ही वक्तव्य में समाने जितनी रह गई है कि कुछेक प्रसंगों में नक्षत्रों की गति का सम्बन्ध सूर्य के साथ जोड़ने की अपेक्षा पृथ्वी के साथ जोड़ना अधिक सुविधाजनक है ।'
बुद्धिवाद की अपूर्णता
मतानैक्य और उत्तरवर्ती सिद्धान्त के द्वारा पूर्ववर्ती सिद्धान्त का निरसन - ये दोनों बुद्धिवाद की सहज अपूर्णताएं हैं । दर्शन वही है जहां मतैक्य हो. उत्तर के द्वारा पूर्व का समर्थन हो ।
बुद्धिवाद अपूर्ण इसलिए होता है कि वह परोक्ष है । दर्शन प्रत्यक्ष होता है इसलिए वह पूर्ण है । बुद्धिवाद की उत्पत्ति इन्द्रिय और मन के जगत् में होती है, जो स्वयं चैतन्यमय नहीं है बल्कि चैतन्य के वाहक हैं । दर्शन की उत्पत्ति आत्मिक जगत् में होती है, जो स्वयं चैतन्यमय है ।
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