Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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पुराण साहित्य ]
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विशेष – जिनसेनाचार्य प्रणीत आदि पुराण के २६ वे पर्व का हिन्दी गद्य है । गद्य का उदाहरण निम्न प्रकार हैं। हे देव तुम्हारा बिहार के समय जाणु कर्म रूप बैरी को तर्जना कहतो डर करतो संतो ऐसो महा उद्धत सबद कार दिल का मुख पूरा है | जानें ऐसी पगार नगरा को टंकार वद भगवान के बिहार समय पग पग के विषै हो रहै ।
( पत्र संख्या ३३ )
४७१. वद्ध मानपुराण भाषा - पं० केशरीसिंह | पत्र संख्या - २०३ भाषा-हिन्दी । विषय-पुराया । रचना काल - सं० २०७३ फागु सुदी १२ । । लेखन काल सं० पूर्ण वेष्टन नं ० ६७८
विशेष — ७५ से ६४ तक पत्र नहीं हैं। अन्य का श्रादि श्रन्त भाग निम्न प्रकार है
प्रारम्भ – जिनेशं विश्वनाथाय अनंतयुग सिंघवे ।
धमंचभूते मूर्द्धा श्रीमहावीरस्वामिने नमः ॥ १ ॥
| साइज - १९३५३ १८७४ चैत
च ।
१४ ।
श्री बद्धमान स्वामी व हमारी नमस्कार हो । कैसेक हैं बद्धमान स्वामी गणवरादिक के इस हैं, घर संसार के नाम हैं और अनन्त गुखन के समुद्र है, पर धर्म चक्र के धारक हैं।
गद्य का उदाहरण
नगर सवाई जयपुर जानि at after अधिक प्रवानि | जगतसिंह जहराज करेह गोत कुलाहा सुन्दर देह ॥६॥ देव देस के श्रावे जहाँ, मांति मति की वस्ती तहो । जहां सरावग यसै अनेक ईक के घट माही विवेक ||
- तिन में गोतछाडा माहि, बालचंद दीवान कहांहि । ताके पुत्र पांच गुणवान, तिन में दोय विख्यात महान् ॥८॥ जयचंद रायचंद है नाम स्वामी धर्मवती कोने काम | राजकाज में परम प्रवीन, सधर्म ध्यान में बुद्धि मुलीन ॥ ॥ संघ चखाय प्रतिष्ठा करी, सब जग में कोर्ति विस्तरी । और अधिक उत्सव करि कहा रामचंद संगही पद कहा ॥ १० ॥ दीवान जयचंद के पांच, सबकी धरम करम में सचि ।
श्रहो या लोक बिषै ते पुरुष धन्य हैं ज्यां पुरुष न का ध्यान विषै तिष्ठताचित उपसर्ग के सेंटेन कर किंचित् मात्र ही विक्रिया कुळे नहीं प्राप्ति होय हैं ॥७॥ तहां पीछे वह रूद्र जिनराज कू चलाकृति जाणि करि लब्जायमान भयायका आप ही या प्रकार जिनराज की स्तुत्ति करिबे कू उद्यमी होता मया ।
धन्तिम प्रशस्ति