Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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४३६. विचारपडत्रिंशका स्तोत्र -धरजचन्द के शिष्य गजसार । पय संख्या ४ । गाइजइन । भाषा-संस्कल | विषय-स्तोत्र । रचना काल-~| लखन काल -- पूर्गा । बटन मं. ३ ।
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विशेष –सिरि जिहंस पुसीसर रजे धवलनंद :
सिस गजगारंग लहिया नासा अप हिया ॥१२॥
४३७, विधापहार स्तोत्र-धनंजय । १५ संख्या-३ । साइब-११४४ इन । भैया- लोन | रनना काल-X । लेखन काल-x पूर्ण । वएन नं० ।
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पत्र संख्या ४० हैं।
१८. विषापहारस्तोत्र भाषा-अधक्षकीर्ति । पत्र संख्या-१३ । साइन-२०१४ । भाषा--हिन्दी । विषय-स्लोथ | रचना काल-x | लेखन काल-x 1 पूर्ण । वष्टन नं. २०१॥
विशेष-पत्र साग हेमराज कृत मकामर स्तोत्र भाषा भी है। प्रतियां धीर है।
४३६. विषापहार टीका-नागचंद्रसूरि । पत्र संख्या २६ । साइज-=xt दस | भाषा-स्न । विषय-लाच । चना काल-x। लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं. १०।
विशेष--महारक ललितकीर्ति दे
शों में नयनवर।
५४०. विनतो-अजयराज । पत्र संख्या-२ । साइज - 3:४५, इन्न । सपा-हिन्दी । विषय-लवन | *पना काल-४ । लेखन काल-X । पूर्ण | वेष्टन नं. ४२५ ।
विशेष - दूसरे यत्र पर रविवार कथा भी दी हुई है पर बन यपूर्ण है। पय तक है।
४४१. शत्रुञ्जय मुख मंडन स्तोत्र (युगादि देव स्तवन)। पत्र संख्या-57 1 RE-.xx ज | भाषा-गुजरानी। विषव-स्तोव । रचना काल-x | लेखन काल-x पूर्ण श्रेष्टन नं. २१६ |
विशेष—प्रन्थ में २: गाथाएं हैं जिन पर गुजराती भाषा में अर्थ दिया हुअा है ! यर्थ के स्थान ५ "वस्वान" नाम दिया है।
४४२. शान्तिनाथ स्तोत्र-कुशलवर्धन शिष्य नगागरण । पत्र संख्या-४ । साइप्र-१:४- दत्र | भाषा-हिन्दी | विषय-स्तोत्र | रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्ग ! वेष्टन नं. ३६२ ।
विशेष- पत्र संख्या १२ हैं।
पारम्भ-मकल मनोरथ पूरणो वांछित फल दातार ।
वीर जिणेसर नायके जय जय जगदाधार ॥१॥ यन्तिम-ईय वीर जिणवर सगल मुखकर मयर ली भंडनी।
मिधुण्यी भगति प्रवर यगति रोग सोग विडंउनी।