Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ रस एवं अलंकार शास्त्र सूखे सिंधु तेरी रिपु रानी करि सोय है । नाम जोग औरे अर्थ थापिए निरूक्ति । सांचे गुपाल मए जो रथ्यो राधे सो वियोग है। प्रगट निषेत्र को अनुकमन प्रतिषेध ।
गिर गहिवो न यो तो मा मन को भोग है।
४७२ चैनविलास-नागरोदास । पत्र संख्या-६ । साइज-५०१५५ च । माषा-हिन्दी १५ । विश्य-शृगार । रचना काल-x'। लेखन काल-X । पूर्ण । श्रेष्टन नं ० ३७७ ।
विशेष-ग्रारम्म के ४ पत्रों में स्नेहसंग्राम अतारतेज कृत दिया है जिसके २५ पथ हैं। इसे सं० १८१४ में छोटेलाल होलिया ने ३ थाने में खरीदा था ॥१॥
स्नेहसंग्राम-प्रारम्भ-कुसलिया:
मों है बाकी बाकसी लखी कुज की ओद । समर सस्त्र विल्लुवा लम्यो लालन खोटहि पोट लालन लोटहि पोट चोट अब उर में सागी । कियो दिवो दुलार नीर जान में भागः । प्रजनिधि काकवीर खेत में खो यगोहे । तहो पाव पर घाव करत राधे की मोहे॥१॥
अन्तिम-नेही बृजनिधि राधिका दोउ समर सधीर
हेत खेत काडत तही छाके बाके वीर ।। छाके बाके वीर इन्य वस्थ न मनि । दोऊ करि करि दाब घाव बिन हूँ नहि ।। यह सनेह संग्राम सुनत चित होत विदेही । प्रताप तेज की बात जानि है सुथर सनेही ॥२५॥
बनविलास-प्रारम्मः
अहे बावरी वसरिया ते तप कीनों कौन ।
अधर सुधारस ते विमौ हम तरफा विच मौन ||३|| अन्तिम - मुरली सुनित में मई प्राप्त दगनि विसाल |
मुख बाद सोही कहे प्रेम दिवस अज वाश२१|| नागर हरहि पलाग की दारु धरी दवाय। । भंग रागवंशी लपट्यो हो चिउडी नम काय ॥३॥
ति श्री नागरोदास फत नैनवितास संपूर्ण ।