Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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गुटके एवं संग्रह प्रन्थ (१) तृहरि को वार्ता — पत्र संख्या ६० से ७८ | भाषा - हिन्दी गद्य लेखन काल सं १७६० मात्र सुदी १५ | अपूर्ण
अन्तिम पाठ — भरथरी जी गोरखनाथजी का दरसण नैं चलता रक्षा | प्रथां को मात्र सारो देखी करि वकत चीत हुयो | सारी जगत की सुख । हैव ताको दुध । श्रीणी पराजमन मो देखता और सुना मंडल में चित बीओ इति भरथरी जी का बात संपूरण | पोथी मान स्त्रं चत्रभुज का बेटा की लिखी जैगम काइम बाचें जैजैराम । मी. माह हृदी ३३ सं० १७५० |
(२) आसावरी को बात - पत्र सं०-८० से १२५ | भाषा - हिन्दी गंध 1 अपूर्ण ।
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श्री साई नीमो । श्रवै श्रसाव की बात ऊतिपति वरण ववरणी जे है । ईतरा माँही राणी के पुत्र हुत्रों । नाम सीधुनीसरयो। उात्र हुबो जाति कर्म को | दान पुनि बाजा तो वाजवा लागा | नम्र मात्रै वृद्धाह घरिघरि हुवो 1 श्रावतै दीनि कन्या को जन्म हुवो। पंडित नाम श्रसवरी काव्यां । सिद्धि को वचन है । सोई नाम जनम को मंसिरयो । श्रासावरी देव अंग अच्छरा को श्री हुई तदि श्रासावरो वरस बहकी हुई । तदि पढ़िवानें बैठी ।
५६५. गुटका नं. ६४ - पत्र संख्या १३ | साइज - ७३५ दम भाषा-संस्कृत | लेखन काल - X ।
पूर्णं ।
विशेष— निन्न स्तोत्रों का रूग्रह है
विषाहार, एकीभाव एवं भूपालचतुविशति ।
५६६. गुटका नं० ६५ पत्र संख्या ४५ साज-७५ इख भाषा - हिन्दी लेखन काल खं०
१७७६ | अपूर्ण ।
विषय-सूची भान मन्जरी
जानकी जन्म लीला
सीता स्वयंवर लीला
कर्त्ता का नाम
नंददास
बालवृन्द
तुलसीदास
श्रादिपाठ-गुर गणपति गिरजापति गौरी गिरा पति,
सारद सेव सुकवि श्रुति संत सरल मति । हाथ जोडि करि विनय सकल सिर नाऊ', श्री रघुपतिवित्रा जथामति मंगल गाऊ ॥३१॥ शुभ दिन रच्यौ सुमंगल मंगल दाइक |
सुनत अचन हिंए वससी
देस सुहावन पावन वेद
मोमि तिलक सम तिरहुत त्रिभुवन मानिये ||२||
रघुनाइक ।
वखानिये |
भाषा
हिन्दी
13
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विशेष
श्रपूर्ण
पूर्ण ले० का ० सं० १७७६
माघ सुदी ६