Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ ]
प्रारम्म-श्री जिन चरण नमू सदा, भ्रम तम नाशक भान ।
जा सुम दर्शन दर्शत, प्रगटत प्रातम सान ॥२॥ चौपई-बंदू श्रीमत वीर जिनंद, मेस्त सकल कर्म नग फंद,
धन्दू सिद निरंजन देव, अप्रगुणातम त्रिभुवन सेव | चंदो श्राचारज गुग्ध सीन, जिन निज मात्र मुद्ध प्रति श्रीन । बंदो उपाध्याय करि भ्यान, नाशक मिश्यातम अज्ञान, मंद साधु महा गंभीर, ध्यान विषय प्रति प्रचल शरीर । बंदू वीतराग हित माष, धातम धर्म प्रकाशन चाब |मा मित्र विकास महा६ख दैन, वरनू बस्तु स्वभाविक ऐन । प्रगट देखिये लोक मझार, संग प्रसाद अनेक प्रकार ॥५॥
-सवैयाअन्तिम-कर्म र सो तो प्यास मति में घसीट फिरयो,
ताही प्रसाद सेती वीसा नाम पाया है। भारमल मित्र को बहालसिंह पिता,
तिनकी सहाय सेती प्रथ यो बनायी है ।। यामें भूल चूक होय सोधि सो सुभार खोजो,
मो कृपा दृष्टि कीजये भाव यो जनायो है। दिग निध सत शान हरि को चतुर्ष गन,
फागुन सुदि चोक मान जिन गुन गायो है ।।
दोहा-सानंदमय यानंद करन हरन सकल दुख पोग |
मित्र विलास अब यह निज रस अमृत भोग ।
इसमें निम्न लिखित पाठों का संग्रह है:घट द्रव्य निर्णय-दूसरे अधिकार तक । मावों का पूर्ण सैद्धान्तिक विवेचन है।
द्वास व्रत वर्णन, कषाय के पश्चीस भेद वर्णन, सम्यक दृष्टि अवस्था पन, गुरु स्वरूप वर्णन, वासानुप्रेमा वर्णन, बाईस परीषह वर्णन, पंच प्रकारचारित्र वर्णन, मोह तत्व बर्मन, एवं सुख दुख निर्णय/मय का विषय है पात्मा में स्व और परभावों का सैद्धान्तिक विवेचन ।
६५४. बचनशुद्धिव्याख्यान-पत्र संख्या-६ : साइज-१२४७ इन्न । भाषा-हिन्दी। विषय-संग्रह । रचना काल-X । लेखन काल-सं. १६४३ जेष्ठ बुदी 55 1 पूर्ण । बेष्टन नं० १५१
विशेष व्याख्यान कर्ता थालालजी को कहा गया है ।