Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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गुट एवं संग्रह प्रस्थ ?
(२४) सझाय
(२६) पेनाख्यान पंचतंत्र )
प्रारम्भ प्रथम अ अरिहंत, अंग द्वादश ज् मार
—
गणधर संत, नमो प्रति गयधर तिसतर || नमो गणेश सारदा भवर गुरू गीत्तम स्वामी | तीर्थकर चौबीस सकल मुनि भए शिवगामी || नमो व्याति भाषक सकल सहाय भविक सम तुम्हरे प्रसाद यह उच्च पंचतंत्र की
पंचरूयान बखानि हो न्याय नीति संसार |
——
बुद्धि भाषा चुरू अन्य विस्तार ||१||
मिपाठ एवं नाम निज होस्दै घरे मुख से मिट वचन उच
।
कवि निर्मला
सब जिय, सुख्ख सपने थान, सदा कहे निज मन में ग्यान |
दोहा—सम निज थानक सुख लहैं, सब मुख समरे राम ।
सहस किरत भाषा कियो आवक निरमल नाम ||
(२७) सात व्यसन सिकाय
(२८) ज्ञान पच्चीसी (२३) तमाखु गौत
(३०) नल दमयन्ती चीप
(११) शांति नाथ स्तजन
३१ पार्श्वनाथ स्तवन
इति श्री पचारूपान आवक निर्मल दास कृत भाषा संपूर्ण लेखन काल सं० १७५४ जेठ ३१ पत्र में है। तथा १९४१ प हैं।
(३२) महावीर स्तवन
(३१) राजमसी नो चिट्ठी
(३४) नववाडी नो सिकाय
(३५) शील
(१६) दाम शील चौ
(३७) प्रमादी गीत
क्षेमकुशल
सहक
समयम्-दर
केशव
27
विजयदेव मूरि
जिनदत्त सूरि
गोपालदास
11
हिन्दी
२१
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पथ सं० १०
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पद्म सं० ७६
२०० सं० १७४२
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