Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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गुटके एवं संग्रह अन्य ]
समयसार
विमती
अपूर्ण
विनती
अपूर्ण ।
विनती
निज कारण पदेस मेरे, कीयों वृद्धि अनुसार रे । कविया दूसरा जिनधरो यो सब सुधारी रे। यह विनती मनराम की है, तुम हो यह विधान रे । संत सहज श्रगखत जी, करें गुम परवानी २ ।
माई नर भव पायों मिनख की ||४०||
हिन्दी
पंचमगति देखि
अजराम
१७७३ मा बुदी २ । पूर्ण |
बनारसीदास
दीपचन्द
अविनासी आनन्दमय गुण पुरुष भगवान ||
कुमुदचंद
प्रभु
पाय लागी क्षेत्र धारी ॥
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मनराम
"
चार प्रभु तुम नाम जी जी सुमरे मम वय काय
धर्मकीर्ति
"
भ० रायमल्ल
६३३. गुटका नं० १३२ – पत्र संख्या - १० से ३७ साइज ६४६ । भाषा - हिन्दी लेख काल -x | श्रपूर्ण |
17
विशेष - श्रीपाल चरित्र ( रायमल्ल ) तथा प्रद्युम्नरास, ( ब्रह्मरायमल ) पूर्ण हैं।
६३४. गुटका नं० १३३ - १५ संख्या-३१-६४
बखराज हंसराज चौगई-- जिनदेव हि ।
प्रारम्भ - आदीपुर बाद करी चौसठ हिंद
सरखती मन समरु सदा, श्री जिनतिक सुनिंद ॥ १॥ सद् गुरु माथि प्रकरी पानु गुरु आदेश |
25
पूर्ण
विशेष-विमंडल पूजा, दशलक्षण पूजा तथा होम विधान ( आशाचर ) आदि है।
६३६. गुटका नं० १२५ पत्र संख्या १६ साइ-७६
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[ ३००
विशेष – वितामखि महाकाव्य तथा उमा महेश्वर के संवाद का वर्णन है।
६३५. गुटका नं० १३४- पत्र संख्या १०१-०६ भाषा-संस्कृत लेखन -X |
भाषा-संस्कृत लेखन काल-सं०
भाषा-हिन्दी लेखन काल -X |