Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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विषय-गणित शास्त्र ४६. पटत्रिशिका-महावीराचार्य । पत्र ख्या-४५ | साइज-११४४३ दक्ष | माषा-संस्कृत । वषय-गणित । रचना काल-x। लेखन काल-सं० १६६५ श्रासोज सुदी = | पूर्ण । वेष्टन नं. ४६५ ।
विशेष-संवत् १६६५ वर्षे चासोज सुदी - गरौ श्री मूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म० श्री पभनंदिदेवा तत्प? भ. श्री सफल कीर्तिदेवा । तत्प?' भ० शुभचन्द्र देवा तत्प भ० मुमतिकीर्तिदेवा तत्प? भ. श्रीगणकीर्तिदेवा तत्पी वादिभूपयदेवारतद्गुभ्राता व श्री भीमा तत् शिष्य ब. श्री मेघराज तत् शिष्य ब. केशव पठनायें । व्र० नेमिदास की पुस्तक है ।
४६. प्रति नं । पत्र संख्या-१८ साइज-१२४४३ इञ्च । लेखन काल-१६३२ ज्येष्ठ सुदी । पूर्ण । बेष्टन नं. ४६६1
विशेष प्रति पर छत्तीसी टीका भी लिखी है। प्रशस्ति निम्न प्रकार है:
संवत् १६३२ वर्षे जेठमासे शुक्लपक्षे नया तिथी शुरलासरे इलाको या श्री मूलसंघे सरस्वतीगच्छे बजारकारगणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म. श्री पानंदिदेवा तत्पट्टानुसरि म. शुभचन्द्रदेवा तत्प? श्री सुमतिकीर्तिदेवा तत्शिष्य व. श्री सुमतिदास लिखायितं शास्त्र । मट्टारक श्री गुणकीर्ति शिष्य श्रीमुनिश्रुतकीर्ति पुस्तक ।
विषय-रस एवं अलंकार शास्त्र ४७०. इश्कचिमन-नागरीदास । पत्र संख्या--३ । साइज-११६४४ इश्व | भाषा-हिन्दी पप । विषय-शृगार रस ( रचना काल-X । लेखन काल-- | अपूर्ण । वेष्टन न० ४३८ ।
प्रारम्म-इस्क उसी की भालक हैं उयौं पुरज की धूप ।
जहां ताहा पापहं कादर नागर रूप ॥२॥