Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ ज्योतिष एवं निमित्त ज्ञान शास्त्र ४५६. घट्पंचासिका वाताबोध - भट्टोत्पल | पत्र संख्या - १५१ साइज - १०९४६ १ | भाषासंस्कृत | त्रिषय-ज्योतिष । रचना काल -X | लेखन काल-सं० १६५० वैशाख बुदी १० । पूर्ण | श्रेष्टन नं० ४६३ ।
२४६ ]
विशेष-मुनि नोरत्नवीर ने नंदासा ग्राम में प्रतिलिपि की थी। यह मंथ कपूर विजय का था। संस्कृत मूल के साथ गुजराती भाषा में गद्य टीका दी हुई है।
प्रारम्भ - प्रणिपत्य रविं मूर्ख ना वराहमिहरात्मजेन सतमःसा ।
प्रश्नो कृतार्थ गहनापरार्थमुद्दिश्य पृथु यशसा ॥ ॥
नमस्कार करी नह सूर्य प्रति मूर्द्धा मस्तक करी वराहमिहरज पंडित तेह अश्रमज कहीर
टीका - प्रणिपत्य कहीं
पुत्र यता एह वरं नामि प्रश्न न विषइ प्रश्न तीविया कृता कही की थी ।
४५७. संकान्ति तथा महातिचारफल- पत्र संख्या- १८ से ४२ तक | साइज - मात्रासंस्कृत । वित्रय-ज्योतिष | रचना काल -x | लेखन काल सं० १७०३ माघ सुदी ४ । श्रपूर्ण वेष्टन नं० ४००
I
विशेष—व्यास दयाराम ने प्रतिलिपि की थी ।
विषय - आयुर्वेद शास्त्र
४५८. अंजनशास्त्र - अग्निवेश पत्र संख्या - १३ | साइज - १९३५ विषय- आयुर्वेद । रचना काल -X | लेखन काल-सं० १७५४ आश्विन खुदी २ । पू । वेष्वन नं
४५१ |
मात्रा संस्कृत |
विशेष - श्लोक संख्या २३४ है। नेत्र संबंधी रोगों का न है मुस्तान नगर में रामकृष्ण ने प्रतिलिपि की भी हृदय संहिता - वाग्भट्ट पत्र संख्या ६१ । साइज - १९३५ च । भाषा - संस्कृत | विषय-धायुर्वेद 1 रचना काश-X | लेखन काल -X | पूर्ण वेष्टन नं० ५५०/
४५६.
विशेष सूत्र मात्र हैं। जयमल ने प्रतिलिपि को थी ।
४६२. कालज्ञान-पत्र संख्या - १६१ साइज - १० । भाषा-संस्कृत विषय - आयुर्वेद 1 रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८२७ पी हृदी १५ | वेष्टन नं० ४५८
विशेष - श्लोक संख्या - ४०० हैं । सहजराम ने चित्र में अन्नपुराण जी के पास प्रतिलिपि की थी।