Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ मुट के एवं संग्रह प्रस्थ
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विशेष-कृष्ण का बाला चरित बन है।। १२२ पद्य है 1 श्रादि-गर गनेस बदन करि के संतान की सिर नाऊ ।
बाल विनोद यथा मति हरि के सुदर सरस सनाऊ ।।१। भक्तन के प्रेत्सल करुना मय अदभुत तिन की क्रीडा । सुनो संत ही संविधान ''ही श्री. दामोदरं लीला ॥२॥
५२६. गुटका नं० २६-पत्र संख्न्य-३० | साइज-EX६ इन | भाषा-हिन्दी । रचना काल-x | लेडन काल-सं० १८२३ यासोज दी ३ । पूर्ण । । विशेष-लच्छीराम कृत 'कहना भरन नाटक है । कृष्ण जीवन की बाल लीला का वर्णन है ।
प्रारम्भ-रसिक भगत पंडित कांवनु कही महाफल लेह ।
नाटक करूणां भरन तुम लीराम करि देह 1311 प्रेम बढे मन निपट हो अरु प्रावै प्रति रोइ ।
करुणा पति सिंगार रस जहाँ बहुत करि होइ ॥ ... छीनाम नाईक कर फो दोनों गुनिन पढाइ । .....
भेत्र रेष नित न निपट लायें नर निसि लाइ ।।२।।
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अन्तिम पाट-श्रीकृपया कथा अमृत सर बरनी, जन्म जन्म के मल वली। .:: ........... ... ..त अगाध रस वरन्यो न जाई, बुधि प्रमान कछु बरनि मनाम ॥३४॥
श्री मति थोरी हरि जस सागर, सिंधु ममाह कहाँ ली गागर | ॥ . . . . . लाराम कवि कहा- वखानी, इरिजस को कोई हरिजन जाने ||३५||
इति श्री का जीवन लीराम कृत का भरन नाटक संपूर्ण | सं. १८२३ श्राश्वन वदा ३ रधिवासरे। सत्तमो अध्यायः।। - .
५२७. गुटका नं० २५–पत्र संख्या-३८ । साइज-x७ ईन । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-XI पूर्ण
विशेष—गुटके में मरवाहु चरित है। यह रचना किशनसिंह द्वारा निर्मित है जिसको इसने सं० १९७३ में .-एमाता की थी। प्रति नवीन है। .
भद्रबाहु चरित्रप्रारम्भ - केवल वोध प्रकारा रवि उर्दै होत सरिन लाल ।
जग जन अंतर तम सकश छेद्यो दीन दयाल |॥ १॥ सनमति नाम जु पाइयो असे सनमति देन ।