Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ गुटके एवं अन्य संग्रह
बासुदेव पुराण चित्त लाउं, करी हो कृपा रिकह गुण गाउं । समरो गुण गोविंद मुरारी, सदा होत संतन हितकारी ॥ समरो श्रादि सुरसत्ति माता, सुमसे श्री गणपती मुखदाता । बुधकर जोड चरण चीत लाउ, करी हो कृपा कछु हरि गुमगाउ || सुमरी मात पिता वहमाई, सुमरो श्री घुमति के पाई।
दोहा - अहसठी तीरथ कथे, समरी देव कोटी तेतीस ।
रामदास कसा कर बुधी हो जगर्दास | १ ॥ ज्याहा बत्रभुज राय वीराज, प्रमसह तीतहि पुरको राजा। जाके धरम कथा अधीकाई, दानव जुध वी बोहोत बहाई ।। अकलोका स दरसण पुज मुखमान, गऊ विग्र की सेवा जान ॥२॥ नारद उकती भ्यास कही नाही, इसम सकंद भागवत कीन्हा । व्यास पुराण कह सब साखी, श्री सुखदेव नृप मुभाषी ।।
दोहा--चित दे मुनी नृपति धनी परीकत राय ।
ग्यास पुत्र उपदेश तै रस हीयो षभाय । अमर कोक पग मुल नहीं देखों, पंच संग सलत्र सेवा। रामदास वी संगति पाई, भाषा करी हरी कीरति नाई। प्रेम सयाना पुछत वाता, तुम कंसन कहा भये विधाता । आदि देस तुमाहारो कहा होइ, हम सुवचन कहोन जसोई।। महमा कह राम को दासु, देस मालवो यती सुखदास । सहर, सरह निकर ताहा ठाहु, पावो जनम मालनी गाउ || पिता मनोहर दास दिखाता, बीरम ने जनम दीयो माता।
रामदास सुत तीन को भाई, कसन नाव को भगतो ताही ।। दोहा-लालदास लालच कथा, सोध्यो भगवंत सार।
रामदास की बुधी लघु पंथ कुदे न भार || 10 || मृप पुक सुख हैं बसु सुनौ, सुनाथ करौ हो मोहि । बनरव ऊषा हरन की कथा, कह सुनावो मोही ।। ११ ॥ कैसे चत्रा हरी ले गई, कैसे कत्रट मेंट मई । कुण पुनी वाणासूर लीया, पर वसी हरी दरसण दीया ।। सो बभा मुनी ध्यान लगायो, प्रादि पुरुष को अंत न पायो। कहै प्रताप हरी पूजा पाइ, सो हम स कहीये समझाई ॥
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