Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ २७१
गुटके एवं संग्रह प्रन्ध ]
मोको सनमति दीजिए नमी विविध करि सेव ॥ २ ॥
यन्तिम पाठ- यनंत कीरति याचारज जानि, ललित कोहि मू सिम पनाम ।
रजनंदि साको सिष होय, अलप मति धरि करना सोय || श्वेतांबर मत्त को अधिकार, पृट लोऋ मम रंजन हार तिनही परीक्षा कारम जान, पूर्व श्रुत कृत मानस यानि || १ ॥ किया नहीं कविताद की, काव का अभिमान ही री । मंगाक इस चरितह नानि, सयौं सबै सुखदाइ मान ।। मूल मंथ का भये रतन नंदि सु जानि । तापरिभाषा पडरिकीनी मी परमान।११।। नगर चास मुदेस में बरबाडा को गांव । माधुराय बसंत की दामपुरी है नांव ।। तहा बसत संगही कानो मोर पाटणी जोय । ता मुत जालो प्रवर मुम्ब देव नाम तस होय ॥ ताको लय सूत जानीयो किसन सिंघ सब मान । देस दटाहर को मौ सांगानेर मुवाच ॥ १४ ॥ जहाँ करी भाषा यह मद्रवाह गुणवारी | रामति कुमति को परस्त्र के द्वत्र भाव न बिचारि ।। किसनसिंघ बिनती करें, ललि कविता की राति । वह चरित्र भाषा कियाँ, बाल बोध श्ररि प्रीति ।। १७ ।। जो याकी वा सनै विपुल मति उरधारी । कई सौर नो मूल है लीयो गधी सनारी ।। १८ ।। समति कुमति की परख के, कीन्यौं कुमत निवार । महरा भुमति की कीजियों भो सुर सिव पद कार ।। १६ ॥ संवत् भतरह से असी उपरि और है तीन । माघ कृष्ण कुज अष्टमी मध समापत कीन |॥ २० ॥
५२८, गुटका नं०२६-पत्र संख्या-२०० । सारज-८:४६, श्च । माषा-सात-हिन्दी । लखन काल-४ | अपूर्ण
विशेष-- गृटका प्राचीन हैं । निम्न पा) का संग्रह है।