Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ काव्य एवं चरित्र
जिनकी ते सारद वर दीयो, सुखसुरिताम अमल जल पायौ ॥ समरि समार गुण ज्ञान मभीर, ब, समति अध घटहिं सरीर । जिनमुद्रा जे धारणा धीर, भव आताप वुभावन नीर ॥ विनकै चरण चित्त महि धर, चिर अनुसार कक्ति उच्च । गुरु गणधर समरो मन माहि, विघन हरन करि करिनु वाह !! } नगर श्रागरो बस सुवास, जिहपुर नाना भोग विलास | बसीह साह बढ़ धनी धर्मनि, तन्मय नमःः सा शिलखि ।। गुग्धी लोग छत्तीसौं कुरौ, मथुरा मंडल उत्तम पुरी ।
और बहुत को करें बचाउ, एक जीभ की नाही दाउ ।
भुपति सूरदासाह सुजान, परि तम तेज हर नमो मान । मध्य माग-सुनिरी माइ कहीं हो पह, जो नर पाय उत्तम देह ।
सत पंडित सजन सुखदाइ, सत्र हित कहि न कीप २१६ ॥ जो बोले सो होइ प्रमान, जह चेटे तइ पावै मान ।
र मात्र मन धरै न कोइ, जो देसै ताकी सुख होई ॥७४|| यह सब जा िदया को अंन, उत्तम कुल अक्ष ५ अनंग !
दौरघ यात्र पर ता तनी, सेवहि चरन कमल बह गुनी ॥७॥ अन्तिम भाग-संवत् सोलह से अधिक सप्तरि सावण मास ।
सुकल सोम दिन सप्तमी कही कमा पृदु भास ।। अग्रवाल वर रंस गौसना गांव को । गोयल गोत प्रसिद्ध चित्र ता ठाव को ।। भाता चंदा नाम, पिता भैरू भन्यो। परिहानंद कही मनमोद अंग न गुन ना गन्यौ ।।५१८॥
इति श्री यशोधर चौपई समाप्ता ।
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सयत १८३१ का मैं घटती पाना पुरी कियौ पुस्तक पहेली लिस्योछ। पुस्तक लूटि में अश्यों सो यो निचरावलि यो गानों का भाशा का पंचा बाचै पर्छ त्याह मन्य जीवाने पुन्य होयसी ।
५१५. यशोधरधरित्र-खुशालचन्द । पत्र संख्या-४१ । साज-३४६ इंच : भाषा-हिन्दी । विषयचरिख । रचना काल-सं० १५८१ । लेखन काल-- 1 पूर्ण । वेष्टन न० ६१४ ।
विशेष-२ प्रतियां और हैं।
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