Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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चरित्र एवं काव्य
[२११ प्रय वचनि का प्रारम्स | मथ्यलोक के असंख्यात द्वीप और समुद्रों के मध्य एक लाख योजन के व्यास वाला माली के श्राकार सबस गोल जम्बू नाम की द्वीप है । जिसके मध्य में नाभि के सद्रस सोमा देने वाला एक सुदर्शन नाम का पर्वत पृथ्वी से दस हजार योजन ऊ'चा है और जिसकी जद पृष्ली में १,००० दश हजार योजन की है ।
अन्तिम - जंबूस्वामी चरित जी, पंह पुने मनलाय ।
मानवाहित सुख भोग के, अनुकम शिवपुर जाय ।। संस्कृत से भाषा करी, बर्म बुद्धि जिनदास । लमेचू नाथूराम पुनि, ईद पद की तास || किसनदास सुत मूलचंद, करी प्रेरणा सार । जंबूस्वामी चरित की, करी प्रचनि का सार || तत्र तिनके आदेश से माषा सरल विचार । लघु मति नाथूराम सुत दीपचंद परवार ।। जगत राग घर द्वेष वश, चहुँगति भमैं सदीन । पावै सम्यक रल जो, काट कर्म अदीब ।। गत संत निर्वाण को महावीर जिनराय । एकम श्रापया शुक्ल को को पूर्ण हरषाय || यंतिम है इक प्रार्थना सुनी सुधी नरनार । जी हित चाहो तो करो स्त्राथाय परचार ।।
इति श्री जंबूस्वामी चरित्र भाषा मय बच निका संपूर्ण ।
२४८, जीबंधरचरित्र-प्राचार्य शुभचंद्र। पत्र संख्या-८० । साज-११३४५ इम्प 1 माषासस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-सं० १६२७ । लेखन काल-X । पुर्ण । वेष्टन नं ० २१३ ।
२४६. दुर्घटकाव्य-कालिदास । पत्र संख्या-२० । साइज-११४५ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषयकाव्य । रचना काल-x ! लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टना नं. ४८४ ।
प्रति संस्कृत टीका सहित है।
1 भाषा
२५०. धन्यकुमारचरित्र-गुणभद्राचार्य। पत्र संख्या-१ । साहज-१२४४ संस्कृत । विषय-चरिख । रचना काल-- । लेखन काल-X । पूर्व । वेष्टन न. १७२
बिशेष-लंबकचकन्योत्रभूमछुमचन्द्रो महामना।
साधुः सुशीलवान् शातः श्रावको धर्मवत्सल ।। तस्य पुत्रो वभूमात्र कम्हणो दानवान वशी।