Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[सुभाषित एवं नीतिशास्त्र
विशेष- श्लोक संसा ११३ प्रमाए ।
३८३. शतकत्रय-भत्तदरि । पत्र संख्या-६७ | साज-१०x४६ इन्च 1 भाषा-संस्तुत । विषयसमर्षित । २चटा काल-x | ल काल-स. १८५८ शास्त्र सुदी २ । पूर्ण । वे27 नं. ३५१ ।
विशेष - पत्र ३ तक संस्कृत टीका भी दी हुई है । नीदिशतक वैराग्य शतक एवं शृगार शतक दिये गये हैं।
३८४. मलराम बिलास-मनराम । पत्र संख्या-१० | साहज-:४५६ छ। भाषा-हिन्दी (पद्य) 1 वषय-सुभाषत । रचना काल-X1 लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन में ३:५।
विशेष-हा, सीथा, कवित्त श्रादि, छंदो का प्रयोग किया गया है तथा विहारीदास ने संग्रह किया है। प्रारम्भ -- करमादिक करिन को हरे परहंत नाम, सिद्ध करै काम सब सिद्ध को भजन है ।
उत्तम नमुन गुन चाचरत जाकी संग, आचार ज भगत बसत नाकै मन है। उपाध्याय भ्यान तै उपाधि सम होत, साध परि पूरण को नुमरन हैं।
पंच परमेष्टी को नमस्कार मंत्रराज धात्रै मनराम जोई पा. निज धन है ।।
३८५. राजनीति कवित्त-देवीदास । पत्र संख्या-२४ । साइज-EX६ च । माषा-हिन्दी । विषयनोनि । रपना काल-X । लेखा काल-X । पूणे । बेष्टन नं ० ४७३ ।
विशेष--११६ कवित्त है पत्रं गुट का साइज हैं | पत्र १,२,४ तया अन्तिम बाद के लिखे हुए हैं। ताजगंज नागरे के रहने वाले थे तथा श्रीरंगजेन के शासन काल में भामरे में ही रचना की।
६६. सद्भाषितावली-पन्नालाल । ११ संख्या-१३ । साइज-१३४८ रञ्च | गापा-हिन्दी गद्य । विषय-मुमापित । रचना काल-X । लेखन काल-० १६४२ पौष खुदी ८ । पूर्ण | बेटन नं०८४ ।।
३८७. सिंदर प्रकरण-बनारसीदास | पत्र संख्य -३७ । साइज--X६ इञ्च । भाषा-हिन्दी पद्य । विश्य-सुभाषित । रचना काल-सं. १६६१ : लेखन काल -x I पूर्ण । श्रेष्टन नं - १३६ ।
विशेष-१८ पा से अागे मैया भगवतीदासजी कृत चेतन कम चरित्र हैं जो अपूर्ण है।
३८. सुभाषितरत्न सन्दोह-अमितगति 1 पत्र संध्या-०२ | साइज-१२४४३ इञ्च । भाषामेलनाविषय-भाषित । रचना काल-सं० १३५० । लेखन काल-स. १५६ शाख बुदी १२ | पृणं । वेटन नं०२४३
विशेष--मेवःत देश में सहाजहानाबाद में प्रतिलिपि हुई | अहमदशाह के शासन काल में लाल इन्दराज ने देव दास के पठनार्थ प्रतिलिपि कराई ।
३८६. सुभाषित संग्रह..."। पत्र संख्या-२२ । साइज-६०x४३ इन्च । माषा-संस्कृत । विश्यसुभाषित । रचना फाल-x; लेखन काल-- । पूर्ण । श्रेष्टन २० ४१८ |