Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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कथा एवं रासा साहित्य ]
[ २२६ न सतरा से पवीस । पाषाद मदी जागो वरतीज || वारज सोनदार ते जाया । फषा संपूर्ग भई परमाय ।। २६॥ परमी सुरणपो जे नर फोय । ते मर स्वर्ग देवता होय ।। न चूक कही लिखयो होय । नथमल क्षमा कत्रो सब कोय ।। २११ ।।
।। इति श्री कचोर धनदत्त कथा संपूर्ण ।। 1 - 1 प्रति प्रौर है।
३६५. प्रतकथाकोष-श्रुतसागर । पत्र संख्या-८० । साज-१२४५६ च । भाषा-संस्कृत । विषयश्या । पनना काल-X । ललन पाल-२० १७०४ शाख पुदी १४ । पूर्ण । वेष्टन नं. १५३ ।
विशेष-भालाब में पावनाय चैत्यालय में प्रतिलिपि हुई थी । ४ प्रतियां पौर हैं।
२३६. प्रतकथाकोप-खुशालचंद । पत्र संख्या-८० । साज-१२४ रच | भागा-हिन्दी पप | विषय-कथा । निना करत-४ । लेखन फाल-२० १७४0 1 पूर्ण । वेधन नं० २० ।
विशेष-२ प्रतियां चौर हैं। नि १३ थानों का संग्रह है
पति कथा, दशलतण कपा, मुक्तावलत्रित कमा, वपकया, पंदनषष्ठीकमा, षोडपकारणकया, ज्येष्ठ जिनवरफमा, श्राफाशपंचमीब 141, मोतसप्तमीव्रतकथा, अक्षयनिधिकथा, मेघमालामतकया, लन्धिविधानकचा और पुष्पांजलिमतकमा ।
५३७. शुकराज कथा ( शत्रुजय गिरि गौरव वर्णन )माणिक्य सुन्दर। पत्र संख्या-२१ । साइ-१.xx., । भाषा-संस्कृत | विषय-कथा । रचना काश-X । लेखन काल-x | पूर्ण । बेष्टन नं. ४७६ |
३३८. सायसनकथा-सोमकीर्ति । पत्र संख्या-६६ । साइज-११४ इन्च । माषा-सस्कृत । विषय-कपा । रचना बाल-० ११२६ । लेखन काल-सं० १७१७ चैप पुदी ११ । पूर्ष । श्रेष्टन नं० १६६ ।
विशेष-~जोश भगवान ने सिलोर में प्रतिलिपी की पी कुल ७ अध्याय है । श्लोक संख्या २१६७ प्रमाण है ।
२३. सिंहासनद्वात्रिंशका-पत्र संख्या-४१ | साहज-६४४ छ 1 भाषा-संस्कृत | विषय-कथा । रचना काल-X | लवन काल-X । अपूर्ण । देष्टन नं. ३८६ ।
विशेष-ननासों कमाएं पूर्ण हैं पर इसके बाद जो कुछ धौर विवरण है वह अपूर्ण है।