Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ कथा एवं रासा साहित्य
गाधर मुनिवर कह वंदना । वंक चोर की कथा मन त ॥ ता सीमा पाली निज मांस । ताको भयो सोलहो निवास || ३ ॥ दुजी कमा सेठ की कही । नाम धनद धर्म नगरी सही ॥ सदा ब्रतपाल निज सार । ऊँच नीच को नही विचार ॥४॥
अन्तिम -पटसी मुणसी जे नर कोय । क्रम २ ते मुक्ति ही होय ॥
सहर चाटसू हवस वास । तिह पुर नाना मोग विलास ॥ २७७ ।। नधी कूत्रा नव सै ठाय । ताल पोखरी या न जाय ।। ना बहो जगोली राव । सबै लोग देषण को माल || २६८. ।। डीत माहि वणी चौकोर 1 नीर भरै नारी बहु और ॥ चकवा चकवी केल कराहि । अधिक ताहि नहीं दुख दाय ॥ २७ ।। छत्री चौतरा भैठक घणी । घर मसजद तुरका की पगी ।। चहुँचा रूप वृक्ष बहु प्राय। पंधी देलि रहे विरमाय ॥ २८ ।। चहुधा नार अधिक बहाय । पावे संग वड़ा पर गाय ।। सहर वीचि ते कोट अतग नाहि सुरज प्रति वणी मचंग ।। २८१ ।। 'बहुधा खाई मरी मुभाग : मोस जागी रिहा ।। बहुघा बणे अधिक बाजार । बसे वणिक करै व्यापार ॥ २८ ॥ कोई सौनो रूपी की। कोई मोती माणिक लौ ।। कोई येचे रका रोक 1 केई वानी रोका ठोहि ॥ २८ ॥ कोई परचूना रेनै नाज। केई एकठे मेले साज ॥ १६ उधार दाम की गाठि । ई पसारी माडै हाटि !॥ २८ ॥ प्यार देव ए जिगावर तगा । ता महि दिन बढो यत्ति वसा ।। करै महोछ पूजा सार । धावक लीया सन बाघार || २८3. i! बाई जती रहन को शब । उनही हार दौबे करि भाव ॥
और डेहुरे वैसनु तणा। धर्म क सगला अापणा ।। २८.५ । मौरंगमाहि राज ते धरै। पाँच तीसी लोला करें ।। कडू' नीवा चपन महकाय । हू' अगरका ४ विकसाय ।। २८७ ॥ नगर नायका सोमा धरै । पानु नवु रचित्त बोसो करें ।। असो सहर और नही सही। दुखी बलिद्री दीस नही । २८ ।। हाकिम में महास्वा सही। और जोर कोर दास नहीं ।। मा मा पास भार मौलांत नर नाम उहाय AH