Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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संग्रह
[ १२१
विषय-सूची
कर्ता का नाम
पत्र संख्या बाणिक प्रिया
कवि सुखदेव
१-१७ रचना काल सं० १०६.
लेखन काल सं० १६५५ विशेष- इसमें ३२१ पद्य हैं । व्यापार सम्बन्धी बातों का वर्णन किया गया है ।
स्नेहसागर लीला
वक्षी हंसराज
विशेष-सिक प्रिया का यादि अन्त माग निम्न प्रकार हैप्रारंभ-सिध थी गनेसाय नमः श्री सरसते म: जानुफी बलमाद न्मः प्रथा लिखते बनक प्रिया । चौपई-गुर गंने [ स ] कहै सुस्त्रदेव, श्री सरसुती बतायी भेव ।
वनिक प्रिया वनिक नामी दिया उनिगार हाय ने टौ ।
दोह!-गोला पूरव पच विसे वारि विहारीदास ।
तिनके सुत सुखदेव कहि, वनिक प्रिया प्रकास |1|| वनिकनि को वनिक पिया, मद्यसारि को हेत ॥ पाधि अंत श्रोता सुनो, मतो मंत्र सौ देत ॥३॥ माह मास कातक करे, संवतु सौधे साठ ।
मते याह के जो चले कबहु न श्राव घाट ॥२॥ चौपई-फागुन देव दलज पाइयो सफल बस्तु सुरपति चाइयौ ।।
चार मास इहिरे हैं प्राई पुन पताल एता हो जाइ ||२| मध्यभाग--प्रथा जेट बस्तु लांचे को विचार । दोहा--तीन लोक मऊ दिसा, सुरनार एक विकार ।
जेट वस्तु विकात है पाक्स की दरकार ॥१४७|| घट घटी सो घटि गई, वस्तु पैच षतकार । विक्री कौ दिन बाहरी कीजे वाच विचार ॥१४१|| जेठी विक्री जेठ की सव जेठन मिल माख ।
सकल वस्तु पानी भई जौ पानी लौ राख ||१४२|| चौपई-ग्राम ऋतु वरसै लछिमी बैंच बस्तु न भाव कमी ।
यहि मत जौ न मान है कोष, वीधै सारै ब्याज गये सोइ ।। १ ४३।। जेठे वस्तु न बरिये धाइ, अपनै हो तो वेची नाइ।
सालु सम्हा रहियो वाकी, जलके वर दुलभ गहकी :॥१४४॥ अंतिम माग--