Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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२०८ ]
[ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान २२८. सहस्रगुणितपूजामीशुभचंद्र । ५३ संख्या-45 1 साज-1०६x४३ च । भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । चना काल-X । लेखन काल-२० १६६८ | पूर्ण । वेष्टन नं ०६० |
विशेष-संवत् १६६८ वर्षे शाकं १५३३ प्रवर्तमाने पौष बुदा . महाराजाधिराम महाराज श्री मानसिंह प्रवत्त माने अंवावत्ति मध्ये ..........।
२२६ सहस्रनाम पूजा-धर्मभूषण । पत्र संख्या-८७ । साहज-११४५ इम | माषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रजना काल-४ । लेखन काल-२० १८७४ | पूर्ण । बेष्टन ०७७ ।
विशेष-शान्तिनाथ मंदिर के पास जयपुर में ६० जगन्नाभ ने प्रतिलिपि की थी।
| माषा-हिन्दी ।
२३०. सहस्रनाम पूजा- ।। पत्र संख्या-१८ | साज-4x. विषय-पूजा । रचना काल-~। लखन काल-x | पूर्ण | वेष्टन नं. ८ |
विशेष –पद्य संख्या २२० है।
- ३१. सादद्वय द्वीप पूजा--विश्वभूषण । पत्र संख्या-०८ साज-२०४४३ इच। भाषासंस्कृत विषय-पूजा । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १८१७ मंगसिर बुदी । । पू। वेष्टन नं. ७= !
प्रतिभ..-पत्र सम्या -१६ | साज-११४५३ | खेसन काल-x। पृ । वेष्टन न. ७६ ।
विशेष-अटाई द्वीप के तीन नक्शे माँ हैं उनमें एक कपडे पर है जिसका नाप 'x' " फीट है। नक्शे के पीछे द्वीपों का परिचय दिया हुआ है । इसके अतिरिक्त तीन लोक का नक्शा भी है।
२३२. सिद्धक्षेत्र पूजा-। पत्र संख्या-४५ से ५० तक । साइज-1.3x+ च । माषा-हिन्दी विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । थपूर्ण । वेष्टन ने ।
विष-निर्वाग्य काण्ड गापा भी हैं । ५ प्रतियां और है ।
२३३. सिद्धचक पूजा (अष्टाहिका)-नथमल बिलाला । पत्र संख्या-10 | सा५-१२:५८ ३७ । मात्रा-हि-दी। विषय-पूजा । रचना काल-X1 लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १६ ।
२३४. सिद्धचक पूजा-सन्तलाल । पत्र संख्या-११० । साइज-१२५४७३ ईन । भाषा-हिन्दी । विषय-पूजन । रचना काल-x। लेखन काल- १९८६ पासोज एदी पूर्ण । वेष्टन नं.१ ।
विशेष-ईश्वरलाल चांदवाड ने यजमेर वालों के चौबारे में प्रतिलिपि की थी।
संवत् १९८७ में अष्टाहिका व्रतोधापन में केसरलालजी साह की पत्नी नंदलाल पाने वालों की पुत्री ने औलियों के मन्दिर में मेट की थी।
२३५. सिद्धपूजा-पद्मनंदि । पत्र संख्या-४ । साइज-१०x४६ मा । भाषा-संस्कृतः । विषय-पूजा । रचना काल-XI लेवन काल
श्रासोज बुदी १० । पूर्ण । वेष्टन नं. ४६। .