Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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समरौ संकर दोय कर जोखि, मी सुर तेजीसौं कोधि। सदगुर कह लागौ पाय, मुलौ अखिर घौ. समुझाय ॥४॥ सोलासैर तोडौतरै जाणि, चंद कमा ज्यौ चदै परमाणी । मै म्हारी मति साफ कहु, अखिर मात्र पदा सो लहु ॥५॥
दोहा-फायण मास वसंत रिति, दुतिया सम गण सति ।
चंद मा प्रारम्भ कोयौ धूरौ वृधि तुरंत ॥६॥ प्रामानपुरी अपिदिसि पछिम दिसा गिरनारी। वेह संजोग असी रम्यौ चंद परमला नारी ||
अन्तिम-भाव रेखो अचपला जॉगि । तीजी और परमला भोग । याकै सत्य सारथा सब काज, विलसै चंद प्रापणौ राज ॥
॥ इति श्री राजा व चौपई संपूर्ण ॥
पूर्ण
बीस विरहमान तथा । तीस बीबासी के नाम तीन.लोक कमान
१३ २३२ से ३६५ तक बेलि के विषै कमन हर्षकीर्ति
(चतुगति की बेलि कम हिंदोलणा विशेष-इस गुटके की प्रतिलिपि महाराम चारसं वाले की पुस्तक से जैपुर में सं० १७६४ में हुई थी। सम्यक्त्व के पाठ अंगो का क्या सहित वर्णन , गध चेतनशिला त
, पप पद-उठु वेरो पुत्र देखू'
नाभि जिनंदा
टोडर
४३३. गुटका नं०४४ । पत्र संख्या-२५ |
साx३ इम्च । माषा-हिन्दी । लेखन काल-x। पूर्व । वेष्टन नं ...।
विशेष-नरक दोहा एवं पद संग्रह है।
५ । माषा-हिन्दी । लेखन कास-x।
७३४. गुदका नं. ४५ । पत्र संख्या-१५ । साहन-xx पूर्थ । वेष्टन ०.०१०।