Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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१५६ ]
[ संज्ञ
८२४. गुटका नं० १३५ पत्र संख्या ७४ साइज भाषा - प्राकृत- संस्कृत | लेखन -X पूर्ण वेष्टन नं. १२४० ।
विषय-सूची
दर्शन सार
त्रिलोक प्रति
सम्मुद्रिक रोक
सहायक
ऋषि पूजा
क
देवसेन
4 गुस्थान सकते है इसका ब्यौरा है।
चौबीस अका चर्चा शाका पुरुषों की नामावलि
माषा
गात
"
संस्कृत
कश
माऊ
ममिति
57
37
राज पट्टावली
11
राजाओं के वंशों की पट्टाबलि संवत् ८२६ से १६०२ तक की दी हुई है। मालियाचार्य
सज्जन चित्त मल्लम
त्रिलोक प्रति
विशेषटके के अन्त के ४ पृष्ठ याचे फर्ट हुये हैं ।
२५. गुटका नं० १३६ पत्र संग- १४० + साइज ७४६ | भाषा - हिन्दी-संस्कृत-प्राकृत | लेखन कामा-- पूर्ण वेष्टन नं० १२४१ ।
"
प्राकृत
विषय-सूखी
आदित्यवार कमा
मावना बतीसी
अनादिनिधन स्तोत्र
कर्म प्रकृति वचन
22
१४८ प्रकृतियों का वर्णन है तथा ४ स्थान तक सात मोहनीय की प्रकृतियों का ब्यौरा भी हैं।
त्रिभुवन विजयी स्तोत्र
संस्कृत
हिन्दी
गुणस्थान जीन संख्या गृह वर्णन
से १४
भाषा
हिन्दी
संस्कृत
विशेष
५२ गाथाएं है ।
१२६
17
31
२० श्लोक है।
हिन्दी
分
विशेष
१५४ पक्ष है।
गुपस्थान तक एक समय में कितने जोन अधिक से अधिक व कम से कम
।।