Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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स्फुट एवं अवशिष्ट साहित्य ८५२. अइमंताकुमार रास-मुनि नारायण । पत्र संख्या-4 साज-१.४४ | भावा-हिन्दी (पष) गजराती मिश्रित | विषय-कथा रचना काल-मं०११-३ । लेखम काल-४ | थपूर्ण घटननं० १९६१ ।
विशेष-१तमा ५ वी पत्र नहीं है।
अन्तिम-अरिहंत दासी हदय यागी पुग इति नजयासए ।
श्री रनसीह गखि गन नायक पाय प्रगमा तास॥३३॥ संबत सोस बिहासो था बर्षि अत्रि बदि पोस मासए। कल्प वल्ली माहि रगिह रच्या सुदर राम ए॥३॥
गाचारिषि शिथ्य समरचंद मुनी विमल गुण पाकाला ॥३५॥
८५३. अजीर्ण मंजरी-पय संख्या-८ । साज-४४३ इञ्च । भाषा-संस्कृत 1 विषय-प्रायद । रचना काल-X । लेखन काल-* । पूर्ण । वेष्टन नं ५४१ ।
८५४. भर्द्धकथानक-यनारसीदास | पत्र संख्या- से ३२ । साइज-६४८१ | भाषा-हिन्दी पक्ष । विषय-प्रात्म चरित्र । स्वमा काल-४ । लेखन काल-। अपूर्ण । वेष्टन २० १५६३ ।
विशेष-कवि ने स्वयं का यात्म चरित लिखा है।
४५. अन् सहस्रनाम-पत्र संख्या- । माइज-१६xव | भाषा-संस्कृत । विश्व-स्तोत्र । रचना काल-होलन काल-४! पूर्ण । वेष्टन में- १२०३।
विशेष-चिंतामणि पाश्चनाव स्तोत्र एवं मंत्र मी दिया हुआ है। पंडित श्री सिंघ सौभाग्य गगि ने प्रतिलिपि की मी
५६. आदिनाथ के पंच मंगन-अमरपाल । पत्र संख्या-८ । साइज-६x६ इन्च । मादा -हिन्द, 4 | विषय-वर्म । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १७७२ सावमा बुधा १४ । पूर्ण । वेष्टन नं० १५१० ।
विशेष-सं0 100 में जहानाबाद के सिंहपुरा में स्वयं अमरपाल गवाल ने प्रतिलिपि की थी।
अन्तिम लंद-श्रमरपाल को रित सदा श्रादि चरन ल्यो खाइ।
मय मघ माझि उपासना रहो सका ही श्राद।
जिननर स्तुति दीपचन्द की भी दी हुई है।