Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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श्री दि. जैन मन्दिर ठोलियों
ग्रन्थ
विषय-सिद्धान्त एवं चर्चा १ भागमसार--मुनि देवचंद्र । पाप संख्या-४६ : साहज-१०x४६ । माया-'हन्दी गद्य । विषय-सिद्धान्त | सपना काल-मं.. १.७३ । लेसन काल-० १७६.६ । पूर्ण । वेष्टन न. ४०४ ।
भारमा- अम मध्य जीत्र प्रतिबोधवा निमित्त मोक्ष मार्गनी पनिका कहै हैं । तिहां प्रथम जीच श्रमादि काल नी मियाती थी। काल लनधि पामी में तीन वरण करें प्रथम यशापयति करण १ वीजौ अपूरन क( २ तौजी अनिवृत्ति ५.रण ३ तिहा यमा प्रवृति कहै छ।
पन्तिम----संवत् सतर बिहोत मन स कारण मास |
मोटे कोट मरोट में वसat सुख चौमास ! ||
विहत खतर गछ मुधिर जुगर जियचंद्र सूर। पुण्य प्रधान प्रधान गुण पाठक गुणेय भूर ॥६॥ तास सीस पाठक प्रवर जिन मत परमत बाग। भक कमल प्रतियोधवा राज सार गुर माध || मान धरम पाठक प्रवर खम दम भगो आगाह । राज हंस गुरु सकति सहज न करें सराह |2|| तास सौस यागम रूपी जैन धर्म को दास । देवचंद आनंद मय कोनौ ग्रन्थ प्रकाश ॥६॥ पागम सारोद्धार यह पाकृत संमृत रूप । अंभ कियो देवचंद मनि शानामृत रस प ||१० धर्मामत जिन धर्म रति भविजन समकित यत । सद्ध अमर पदर लषण मंच किया गण वंस ॥११॥ तस्व ज्ञान मय गंभ यह जो रखें बालाबोध । निज पर सहा सन लस्ने श्रोता लहै मनोध ॥१५॥