Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
View full book text
________________
[ १२७
हिन्दी
दीपकन्द हरीसिंह
पद-दोरी थे लगायोनी
प्रभुजी के नबस
नाम्
मनराम
अक्षरमाला दश बेत्रों की चौबीसी के नाम २५ प्रकार के पात्र वर्णन
पद
किशोरयास
७३२. गुटका नं० ४३ । पत्र संख्या-४२. | साज-ex | भाषा-हिन्दी । वेखन काख१५८२ पूर्ण । वेष्टन नं. १०.८ |
विषय-सूची कर्ण का नाम श्रेमिक चरित्र की कमा
हिन्दी गय प्रीयंकर चौपई
नेमचन्द हिन्दी मर देखनकाल सं० १५.३ पूर्व विशेष -तुलसीराम चांदवाड ने पांडे स्पचन्द की पुस्तक से सं० १५८२ सावन सुदी १५ में पलपल में प्रतिलिपि को । पोमी बिजैराम मौसा की। देसीयाराम (हरिवंश पुराव) नेमिचन्द्र
का 11 का सं, १५८१ विशेष-सं. १७७५ को पति से विजैराम मौसा ने प्रतिलिपि की पी। १३०८ प है। प्रध प्रशस्ति विस्तृत है: बन्दराजा की चौपई
- १ का. सं० १६. ३ फागुन सुबो र ले. का. स. १८२ विरीष- सामानपुरी (गिरनार के पश्चिम दिशा में) के राजा चन्द की कमा है। बिजैराम मीसा ने मथुरा में तिलिपि की भी । इसका दूसरा नाम चंदन मखियागिरि कया भी है । रुपा बड़ी है।
-चंद राजा की चौपई का आदि अंत माग निम्न प्रकार हैप्राम- दोहा-सिधि मधुधि दातार दुव गौरी नंद कुमार | चंद कथा बारम किय पुमति वैहि अपार ॥१॥
ब्रह्म सता सरस्वती तुष हंस नदी पति रूट । तुब पसाय वाणी विमल होय मया मति मूद ॥२॥ चौपई-प्रमय समौतु सरजन हार, वौ जिन यंम रच्यो गद गीरनारि ।
मेर समौ दी सिरधार, तिष्ठ लोक तिदि को बीसतार ||३||