Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[संग्रह
दोहा-देखी मुनी सो मैं कही, मंत्री जो मति मान ।
जानी जाति जी न सब को श्रागै की जान ||३१७॥ चौपई - मतो हथियारू हाम लै जोर, साहु सुभकरन करत का मोर ।
मारगहान हर मन मानियो, दिल कुसाद हरप न बानियों ॥३१८|| कवि सोधे संवत्सर साठ, इह मत चलै परै नहि बाट ।
हहि मति अन्नु पेट भर खाई, एही चीरन को पहराई ॥३१॥ दोहा-जनक प्रिया मैं मुम असुभ सबही गयो बताइ ।
जिहि जैसी नीकी लगै तैसी की बो जाइ ॥३२०॥ सत्रह से सत्रह बरस संवत्सर के नाम | कत्रि करता मुखदेव कह लेखक मायाराम ॥२२॥
.इति वनिक प्रिया संपूर्ण समाप्ता । मादी सुदी १२ शुक्रवासरे स. १८५५ पुकाम घिरारी लिखत लाला उदैतसिध राजमान छिरारी वारे जो बाचे वाको राम राम ।
दोहा-लिखी जथा प्रत देखके कहि उदेत प्रधान ।
जो वाचै श्रवननि सुनै ताको भोर नाम ||
७२१. गुटका नं० ३२ । पत्र संख्या-११८ | साज-४४३ इन्च । भाषा-हिन्दी-संस्कृत-प्राकृत । लेखन काल-x/ पूर्ण । वेष्टन नं.६८७|
कर्चा का नाम
भाषा
विशेष
विषय-सूची लघु सहस्त्रनाम योगीरासो कल्याणमन्दिर स्तोत्र
संस्कृत हिन्दी
जियादास
कुमुदचन्द्र
मात्रा
अपूर्ण
" बैराग्य गीत पद संग्रह
देवीदास नन्दन गणि
जिपदास
द्रव्य संग्रह
ग्रा०मिचन्द्र
जेठ वदी १३ सं. १६७१ में लाहौर में रचना तश लिाप हुई। प्राकृत
लेखन काल सं० १६६६ प्राचीन हिन्दी
द्वादशानुप्रेक्षा