Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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भक्ति एवं नीति शास्त्र |
लाये तव ते भात, दहा रहे विरता को || देवल साघरमी जहाँ पूजा धर्म मान । पारसन खान सपान की, थिति संगति विद्वान ।। असी अंकथा रूप जो कीजे सुधि प्रकास । माषामय घर बहु रहसि रहैसि यामैं मासि ॥७॥ मैना को लघु भात, नाम गुलाब सु नाम को।
श्रत मुनि के हरपात, सुधि दैन को श्रुत स्थ्यौ ।। ६१२. सुभाषित ....... | पत्र संख्या-६ | साइज-४५ च । विषय- सुभाषित । रचना काल-x। क्षन काल-x | अपूर्ण । वेष्टन नं. ११५४ ।
६५३. सुभाषितरत्नालि-भ. सकजकीर्ति । पत्र संख्या-१८ । साइज-१०x४३ इछ । माषासंस्कृत | विषय- सुमाषित । रचनाकाल-x लेखन काल सं० १९८० सास सुदी १ । पूणे । श्रेष्टन मं० १ ।
बीच २ में नये पत्र मी लगे हैं। प्रशस्ति निम्न प्रकार है -
विशेष-संवत् १५८० वर्षे वैसास्त्र मुदी । गुरौ श्री टोकानामध्ये राजाधिराजमुकुटमणिपूर्यसेनराज्ये श्री सोलंकी वंशे .... "श्री प्रभाचन्द्र देवा तामाये खंडेलवालान्वये वाकलीवाखगोत्रे साह नेमदास तस्य भार्या सिंगारदे तत्पुत्र पाखा सस्प मार्या ...... . . ." दुतिय पुत्र साह जैला तस्य भार्या गौरादे तत्पुन गिरराज | इदं शास्त्र लिखापितं नाई माता अनिमित्त ।
विशेष---सात प्रतियां और है । सभी प्रतियां प्राचीन हैं।
६१४. सुभाषितार्णव ..... ... ! १२ संख्या-4 से ४८ । साहज-११४५ इव। माषा-संस्कृत । विषय- सुभाषित । रचना काल-x | लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन न. ५० ।
विशेष – प्रति प्राचीन है। संस्कृत में संकेत भी दिये हुए हैं। पत्र २३ वा माद का लिखा हुआ है ।
६१५. सुभाषितावलि भाषा............"। पत्र संख्या-७४ | साइज-६६४६३ च । भाषा-हिन्दी; विषय-मानित । सपनाकाल-X । लेखन काल-x | अपूर्ण । वेष्टन न० १०२४ ।
विशेष-६७ पधों की भाषा है अन्तिम पत्र नहीं है । प्रारम्भश्री सवार नमू वितलाय, गुरू समुरू निरनभ मुभाय । जिन बाणो भ्याउ निरकार, सदा सहाई मवि गग्य तार ||१||