Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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ग्रन्थ मात्रित जिन वरगायौ, ताकी अरथ कछु हक लगौ । निज वर हित कारण गुण खान, माखू भाषा सुखहु तुजान ॥ सीख एक सदगुरु की सर, सुवि धारौ निज चित्तमभारि |
मनुषि जनम सुख कारण पाय, एसी क्रिया करहु मन लाय ॥२॥
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६१६. सूक्तिमुक्ता (लो सोमप्रभसूरि । ११ संख्या - १४ | साइज - १४० ३ १ | भाषा-संस्कृत | विषय-समति । रचना काल -X | लेखन काल - X 1 पूर्ण 1 वेष्टन नं० ३०० १
विशेष - = प्रतियां और हैं ।
६१७ सूक्ति संग्रह "
सुभाषित । रचना काल -X | लेखन काल -X
[ स्तोत्र
। पत्र संख्या - २० - १९४५ च । माषा-संस्कृत । विषयचूर्ण | वेष्टन नं० १४५ ॥
विशेष - जैनेतर ग्रन्थों में से सूक्तियों का संग्रह है।
६१८. हितोपदेशयत्तीसी - बालचन्द पत्र संख्या- ३ | साह - १४४ इ मात्रा - हिन्दी | विषयसुभाषित | रचनाकाल -X | लेखन काल -X | पू । वेष्टन नं ० ५६३ ।
६१६. अकलंक स्तोत्र स्तोत्र । रचना काल-->< | लेखन काल - ०
विषय - स्तोत्र
....... | पत्र संख्या - ५ | साइज - ३४३ इ । माषा-संस्कृत विषय१६२६ | पूर्णं । वेष्टन नं०६५ ।
६२०
अलंकाष्टक भाषा - सदासुख कासलीवाल | पत्र संख्या- १६ । साइन- ११५ इम्च । भाषा - हिन्दी | विषय-रतीय रचना काल सं० १६१५ श्रावण सुदी २ | लेखन काल- सं १६२५ माघ बुदी ७ | पूर्ण वेष्टन नं० ५०५
६२१. श्राराधना स्तवन-वाचक विनय सूरि । पत्र संख्या- ५ | साइज - १०६४३ इन्च । माषाहिन्दी | विषय-स्तोत्र । रचना काल - सं० १७२६ । लेखन काल -x | पूर्णं । वेष्टमनं० ६०४ |