Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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कथा एवं रासा साहित्य ]
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५५. राजाच की चौप .........|पप संख्या ५१४१५ म भाषा - हिन्दी विषय-कथा रचना काल- लेखन काल सं० १८१२ व १२ पूष्टनं० १६८
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विशेष प्रारम्भ के पत्र नहीं है। पत्र ३५ से फुटकर पद्म हैं।
| पत्र संख्या- साहज ६५ भाषा-हिन्दी विषयपूर्ण नेष्टन ०२३६ ।
नहीं है।
५६०. व्रतकथाको भाषा- खुशालचन्द पत्र संस्था १० साइज १२६ हिन्दी (पथ) विषय कथा रचना काल सं० २०८३ । लेखन काल-पूष्ट
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५२६. राजुजपचीसी रचनाकाल X लेख - विशेष से आगे
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विशेष – निम्न कमायें है।
(१) जेष्ठ जिनवरवतकथा (२) श्रादित्यवारवतया (३) सप्तपरमस्थान व्रतकथा (४) मुकुट सम (५) श्रनिधित्रता () () चन्दनपष्तकमा () सन्धिविधानव्रत कथा (१०) पुरन्दर कथा (११) दशलवगवतकथा (१२) पुष्पाजलित कथा (१३) आकाशपंचमीमत कश्या (३४ । मुकावलीत कथा (१५) निर्दोष सप्तमीव्रतकथा (१६) सुगंधदशमीत्रत कथा |
५६१. रोहिणी कथा
रचना काल -X | लेखन काल -x | पूयं । वेष्टन नं० ५६२. बैताल पचीसी विषय - कथा । रचना काल -X लेखन काल -X | पूर्ण । वेवन न० ९७५ ।
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५६३. शनिश्चरदेव की कथा" विषय-क्या । रचना काल-लेखन
इश्च । भाषा
1 पत्र संख्या-6 | साइज - ५६४५ इव | भाषा-संस्कृत विषय कथा | १०५१ |
पत्र संख्या ६-६२ साइज - ७६ इन्च भाषा - हिन्दी (गथ) ।
विशेष—स्था जीर्ण है। आदि तथा अन्तिम पाठ नहीं है। टीपा का प्रारम्भ निम्न प्रकार है । श्री वारता लि। तब राजा वीर विवादीत फेरि जाये सीस्थी के रुख जाये चढ़वी पर अत ने उतारि परि से नयी | तब राह में अक्षम बेताल पोम्यो || हे रामा रात्रि को समी राह दुरि । पैव कटे ही ॥ उषा भारता यह कटे सोयेक कथा कहूँ छू ॥ तु सुपि ॥
स्व
.........| पत्र संख्या - १३ | साह-- ६x४ ०१०५२ माघ सुदी २ पूर्ण वेष्टन नं० २०३८ ।
विशेष सेवाराम के पठवार्य नन्दलाल ने प्रतिप करवाई थी।
| भाषा - हिन्दी |
५६४. शीलकथा - भारामल्ल । | पत्र संख्या ३३ | साइज - ७२६ । भाषा - हिन्दी (पथ) | विषय - लेखन काल १६०५ पूर्ण वेष्टन नं० ६०० |
रचना का