Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
View full book text
________________
नाटक]
सप दीप परगट करू. भाषा बुद्धि समान | बालक यू. मुख होत हैं उपजे अक्षर ज्ञान ॥३॥ प्राकृत की बानी कडिन भाषा सुगम प्रतिक्ष । कृपाराम की कृपा सू कंठ करै सन शिन्य [1] पिगंल सागर सम को बैदा भेद अपार ।
लघु दीरघ गण गण का परन् बुद्धि विचार ||५|| दोहा-गुण चतुराई इधि है मला कहै सब कोइ ।
रूप दीप हिरदै धरै सो बार कवि होय । सोला-निज पुहकरग्य न्यात तिस में गोत कटारिया ।
मुनि प्राकृत सी बात से ही भाषा करी ॥ दोहा- पापा भरती चाले सत्र, जैसा उपजी भुद्धि ।
भूल भेद जाको कयो, को कबीश्वर सुद्ध । संवत सत्रही बरसे और छहत्तर पाय । मादों सुदी दुतिया गुरू मयो मथ मुसदार ॥५६॥
॥ इति रूपदीप पिगंल समाप्त || ५८६. श्रुतबोध-कालिदास । पत्र संख्या-५ | साज-६४५३ रन । भाषा-संस्कृत । विषय-छन्द शास्त्र । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १८ = | पूर्ण । श्रेष्टन नं. १०१
विषय-नाटक ५७. ज्ञानसूर्योदय नाटक-वादिचन्द्रसूरि । पत्र संख्या-१ । साइज-११४४३ इञ्च । माषासंस्कृत | विषय-नाटक | रचना कास-सं० १६४८ माघ मुदी - । लेखन काल-सं० १६८८ जेष्ठ सही। पूर्ण 1 वेष्टन म.१६५।