Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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नाटक ]
अंतिम पाटपुरुष उवाच-तब थाकास भयो कारा, और सभै मिटि गयौ विधारा ।
पुरुष प्रकट परमेश्वर शाहि, तिसी त्रिचेक जानियो ताहि || भव प्रभु मयो मोवि तन धरिया, चन्द्र प्रबोध उदै तब करीया । सुमति विवेकर सरधा साति, काम देव कारन की काति ।। इनकी कृपा प्रसभ मन मुत्रो, जोहो प्रादि सोह फिरि हुवो । विष्णु मक्ति तेरे पर सारा, कृत कत भयो मिल्यो अनुवारा ।। अब तिह संग रहेगो एही, हौं भयो ब्रह्म विसरीयो देही । विष्णु मति तु पहुँची भाइ, कीयो धनंद जु सदा सहाइ ।। अरु चिरकाल के मनोरथ पूजे, गयो शत्रु साल है दूजे । जो निरवत्ति बासमा होड, तातें प्यारा औरन कोई ॥ भई त राज अभैम पदलयो, प्रचित चिंतवत अचित भयो । जा सिर उपर सनक सनंदा, अम वासिष्ठ बेदै ताहि वंदा । कृष्ण भट्ट सोइ रस गया, मथुरादासे सारु सोई वाता ।। चंदे गुरु गोविदं के पाइ, मति उनमान कमा सो गाइ ।
इति श्री मालकवि विश्चिते प्रबोधचन्द्रोदय नाटके पटमा अंक समाप्त ।
५६०. मदनपराजय भाषा-स्वरूपचन्द बिलाला। पत्र संख्या-६६। साइन-११४७, ५ 1 भाषा-हिन्दी । विषय-नाटक | चना काल-सं० १६१८ मंगसिर सुदी ७ । लेखन काल-सं. १६१८ 1 अषाढ मुदो ५ । पूर्ण । वेष्टन नं० ४७१।
चिशेष-संवत शत उगग्गीस अरु अधिक अठास माहि |
मार्गशीर्ष सुदी सप्तमी दोतवार सुखदाहि ॥ तादिन यह पूरण कायो देश वनिका मांहि । सकल संघ मंगल को ऋद्वि वृद्धि मुख दाय ।।
इति मदनपराजय प्रभ की नचनिका संपूर्ण । सं० १६१५ का मिती प्रसाद सुदी ७ शुकवार संपूर्ण । लेखन काल संभवतः सही नहीं है।
] भाषा-संस्कत ।
५६१. भदनपराजय नाटक-जिनदेव । पत्र संख्या-४१ । साइज-१२:४ विषय-नाटक ! रचना काल-४ लेखन काल-सं० १७८१ | माह सुदी १३ । पूर्ण । येष्टन नं० २५ |
विशेष-सवा नगर में प्राचार्य सानोति तथा पं० त्रिलोकचन्द्र ने मिलकर प्रतिलिपि की ।