Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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काव्य एवं चरित्र
सेत वस्त्र पदमवतील, काहं पलागि माजहि पीण । पागम आणि देहु महुमती पुणु दुइ जे पपबई सरस्वती ॥४॥ पदमावती देख कर लेइ, जालामुखी चकेसरी देह । अंत्रमाइ रोहिणी जो सारु, सासण देवी नबइ सधारू ॥१५॥ जिणसासण जो विघन हरेइ, हाथ लकुदि लै कभी होह । भत्रियहु दुरिउ हर प्रसरालु - अगिवापीउ पणउ खित्रपाल ॥६॥ चउनीसउ स्वामी दुस्ख हस्य, चउत्रीस के जर मरण । जिया उवीस नउ घरि मोउ, काउ कवितु जइ हो। पसाउ १७॥ रिषभु श्रजितु संमउ तहि भयउ, अभिनदनु नउत्थर वन यउ । समति पदमु प्रभु अवरु मुपास, चंदप्पउ घाठमड मिका ||||
विधु नबड सीतलु दस भएड, अरु भयंसु ग्यारह जयउ । बासुपज अरु विमल बनतु, धमु नदि सीसहउँ पापा ॥६॥ कुथु सतारह श्रम ए प्रत्यार, मल्लिनाथ एगुणसी पार । पुशियरत नमिनेमि बावीस, पासु बौर महुदैहि असीस ॥१०॥ सरस कथा र उपजई घराउ, निसुबाहु चरित पसह तपउ । संवतु चौदहस हुर गये, ऊपर अधिक ग्यारह भये । भादव दिन पंच सो सारू, स्वाति नक्षत्र सनीश्वर बारु ॥१२॥
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मध्यभाग-प्रय म्न सक्मणों के यहां यापहुधे हैं किन्तु यह प्रकट म हो पाया कि रुक्मणी का पुत्र भागया। पुष मागमन के पूर्व कहे हुए सारे संकेत मिल गये है किंतु माता पुत्र को देखने के लिये अधीर हो रही है -
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पण षणा रूपिणि चदा अघास, पर। षण तो जोबा चोपास | मोस्यो नारद कमउ निरूत, श्राज सोहि पर प्रावह पूत ॥३८४॥ जे मुनि वयण कहे प्रमाण, ते सबई पूरे सहिनाया। च्यारि श्रावते कोठे फले, अरुणाचल दीठे पीयरे ॥३५॥ सूकी वापी मरी मुनीर अपय जगत मरि पाये पीर । सउ रूपिणि मन विमउ मयउ, एते ब्रह्मचारि तहाँ गयउ १३०६॥ नमस्कार तब रूपिणि करर, धरम विरधि खूढा उच्चरह । कारे भादस सो विनउ करेइ, कवय तिघासणु सख देहु ॥३८७॥ समाधान पूछई समुझड़, वह मूस्खा २ बिललाई । सखी बूलाइ जणाइ सार, जैवण करहु म लाबहु बार ॥३८॥