________________
के बराबर ही हैं। "
"फिर भी सीमाप्रान्त है, बहुत सावधान रहना पड़ता है ।"
"सो तो सच है। इस बार युद्ध में अनेक महत्त्वपूर्ण बातें मालूम हुई । प्रभु के साथ बुद्धभूमि में रहना भी एक बड़ा सुयोग है। युद्ध का विषय ही नहीं, सभी राजनीतिक बालों का तथा इससे सम्बन्धित बड़े-बड़े लोगों से लेकर छोटे लोगों तक सबके बारे में सारी बातें मेरे दिमाग़ में स्पष्ट हो गयीं। बहुत-सी वार्ता की जानकरी करने में हुई। यानी में रह जाता तो यह सब कैसे
समझ पाता।"
"चलो, अच्छा ही हुआ। राजकुमार शरीर से भले ही वलिष्ठ न दिखें, पर हैं बड़े धैर्यवान, इतना तो कहना ही पड़ेगा, क्योंकि जब हमने सुना कि प्रभुजी राजकुमार की युद्धक्षेत्र में ले गये तो हम सब बहुत चिन्तित हो उठे थे। युवरानी जी के बलिपुर में आने पर समाचार सुनने के बाद ही हमें कुछ धीरज धा। जब हमें यह खबर मिली कि राजकुमार ही प्रभु के प्राणरक्षक रहे तो हमारी खुशी का ठिकाना न रहा। हममें एक विश्वास पैदा हो गया कि अब पास राज्य बेरोक-टोक बढ़ेगा ।" हेगड़े मारसिंगय्या ने कहा ।
बात बल्लाल की प्रशंसा की चलने लगी तो उन्हें संकोच हुआ। सो उन्होंने कहा, "भगवान की जैसी मर्जी होगी वैसा ही चलेगा न! सब भगवदिच्छा है । वह राज्य इस सिंहासन की उन्नति- यह सब राज्य के प्रति निष्ठावान और समर्पित सचालक वर्ग केही पर आधारित है, यह बात भी प्रभु ने मेरे भीतर बहुत अच्छी तरह उतार दी है।"
वास्तव
बल्लाल की बात पूरी हुई कि तभी रेविमव्या ने आकर निवेदन किया, "अप्पाजी, युवरानी जी आपको बुला रही हैं। " "क्या वे प्रभुजी के पास हैं ?"
"नहीं, वे अपने विश्राम कक्ष में हैं ।"
"साथ कौन है?"
"कोई नहीं।"
"कोई नहीं? दण्डनायिका दिखाई नहीं पड़ीं, मुझे तो लगा कि वहाँ
हाँगी ।"
"नहीं, वे नहीं जायीं ।" रेविमय्या बोला |
"अच्छा चलता हूँ, गुरुजी, कल से पढ़ने आऊँगा । आज मुझे विश्राम कर लेने की अनुमति प्रदान करें।"
अब तक इस सारे सम्भाषण को कवि नागचन्द्र मौन ही सुन रहे थे। बोले, "वैसा ही कीजिए।"
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दां : 27