Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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उद्देशक १ : टिप्पण
एवं तप से लघु प्रायश्चित्त भी यदि निरन्तर वहन करना हो तो वह दान की अपेक्षा से गुरु हो जाता है।' गुरुक, अनुद्घातिक और काल- ये गुरु प्रायश्चित्त के पर्यायवाची नाम हैं।
१. बृभा. ३००,३०१
जं तु निरंतरदाणं जस्स व तस्स व तवस्स तं गुरुगं । जं पुण संतरदाणं, गुरु वि सो खलु भो लहुओ । काल तवे आसज्ज व, गुरु वि होइ लहुओ लहू गुरुगो । कालो गिम्हो उ गुरू अट्ठाइ तवो लहू सेसो ।।
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निसीहज्झयणं
२१. परिहारस्थान (परिहारट्ठाणं)
परिहार का अर्थ है वर्जन अथवा वहन जिसे वहन किया जाता है, वह प्रायश्चित्त होता है, अतः परिहारस्थान का अर्थ है प्रायश्चित्त ।
२. निभा. ४ चू. पृ. २७१- परिहारट्ठाणं- परिहारो वज्जणं त्ति वृत्तं भवति । अहवा - परिहारो वहणं ति वृत्तं भवति तं प्रायश्चित्तं । .. इह प्रायश्चित्तमेव ठाणं ।