Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आमुख
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निसीहज्झयणं
नमक अथवा इसी प्रकार के अन्य पदार्थ से सुस्वादु बनाकर खाया जाता था। प्रस्तुत संदर्भ में निशीथभाष्य में आम पद की विविध निक्षेपों से व्याख्या की गई है जो अनेक दृष्टियों से ज्ञानवर्धक है। प्रसंगतः अनन्तकायिक वनस्पति के लक्षण, श्रुतज्ञानी एवं केवलज्ञानी की तुलना, तत्त्वनिरूपण में उपमा एवं दृष्टान्त का महत्त्व, परिणामक, अपरिणामक एवं अतिपरिणामक शिष्यों की चिन्तन एवं कार्यशैली, प्रलम्ब के विधिभिन्न-अविधिभिन्न प्रकारों का निरूपण आदि अनेक विषयों की सुन्दर जानकारी उपलब्ध होती है।