Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण
१. विकट (वियर्ड)
उल्लेख किया है। वियड शब्द का प्रयोग अनेक आगमों में स्वतंत्र पद एवं उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि चूर्णिकाल तक समस्त पद के रूप में हुआ है। स्वतंत्र 'वियड' शब्द प्रायः प्रासुक मद्य को छानने का प्रचलन था। जैनश्रमण तक्र घट के समान सुराघट जल', पानक' तथा आहार के अर्थ में प्रयुक्त है। समस्त पद में यह ____ को धोये हुए अचित्त जल को 'पानक' के रूप में ग्रहण करते थे तथा प्रायः स्पष्ट, प्रकट अर्थ में योनि', भाव' आदि के साथ प्रयुक्त अपवादरूप में ग्लान आदि के लिए मद्य भी ग्रहण किया जाता था। हुआ है। कप्पो (बृहत्कल्पसूत्र) में सीओदग, उसिणोदग के समान दसवेआलियं में स्वसाक्ष्य से सुरा, मेरक तथा अन्य किसी सुरा और सौवीर के साथ भी 'वियड' पद प्रयुक्त है। निसीहज्झयणं प्रकार के मादक रस को पीने का निषेध तथा एकान्त में स्तेनवृत्ति तथा आयारचूला में अन्यत्र शीतोदक और उष्णोदक के साथ वियड से इनको पीने वाले के दोषों का वर्णन किया है। वहां व्याख्याकारों शब्द तथा पानक के प्रसंग में शुद्ध शब्द के साथ वियड शब्द का ने स्वसाक्ष्य का एक अर्थ जनसाक्ष्य५ करते हुए ग्लान आदि अपवादों प्रयोग हुआ है। प्रस्तुत उद्देशक के 'वियड पद' में प्रयुक्त सातों सूत्रों में अल्पसागारिक (प्रायः एकान्त) क्षेत्र में यतनापूर्वक उसके प्रयोग के सन्दर्भ से इसका स्पष्ट, प्रासुक जल या आहार अर्थ प्रतीत नहीं की परम्परा (मतान्तर) का उल्लेख किया है। १६ होता।
ठाणं में ग्लान के लिए तीन वियडदत्ती ग्रहण करने का उल्लेख पाइयसद्दमहण्णवो में प्रासुक जल, प्रासुक आहार तथा मद्य के मिलता है। वहां अभयदेवसूरि ने वियड का अर्थ 'पानकाहार' अर्थ में वियड शब्द को देशी माना गया है। पिण्डनियुक्ति की वृत्ति किया है। उसी आधार पर हमने वहां उत्कृष्ट दत्ती में कलमी चावल में मलयगिरि ने वियड का अर्थ देशविशेष में प्रसिद्ध मदिरा किया की कांजी या पर्याप्त जल, मध्यम में साठी चावलों की कांजी या है। निशीथभाष्य एवं चूर्णि में दस प्रकार की विगय के सन्दर्भ में अपर्याप्त जल तथा जघन्य में तृणधान्य की कांजी या गर्म जल-यह विगड/वियड शब्द का अर्थ मद्य किया गया है। निशीथभाष्य एवं अर्थ किया है। चूर्णि में मधु, मद्य एवं मांस-तीनों को गर्हित विगय माना गया है प्रस्तुत संदर्भ में निसीहज्झयणं के भाष्यकार एवं चूर्णिकार तथा ग्लानार्थ ग्रहण करते समय इन्हें ग्रहण करने की विधि एवं । वियड शब्द के अर्थ के विषय में मौन है। किन्तु उनकी संपूर्ण परिमाण का सम्यक् निर्देश दिया गया है। निशीथ चूर्णिकार ने व्याख्या मद्य अर्थ को केन्द्र में रखकर की गई है।१८ वियड ग्रहण के 'वालधोवण' के प्रसंग में भी सुरा के गालन (छानने) का तथा तक्र प्रसंग में पानागार-शराब की दुकान का तथा 'गालन सूत्र' की एवं मद्य के 'वारक' (घट) के प्रक्षालन से तद्भावित जल का चूर्णि में स्पष्टतः मद्य एवं सुरा शब्द का प्रयोग हुआ है। मद्य
१. दसवे. ६/६१ २. वही, ५/२/२२ व उसका टिप्पण ३. आयारो ९/१/१८ वियर्ड भंजित्था। ४. पण्ण . ९/२९।
दसवे. ८/३२ सुई सया वियडभावे ।
कप्पो २/५,४ ७. (क) आचू. तथा १/१५१
(ख) निसीह. १/६, २/२१, ३/२०,२६ आदि तथा १७/१३३ ८. पाइय. ९. पि. नि. गा. १०३ वृ. प. ८१-वियडं मद्यविशेषं । १०. निभा. भा. २, पृ. २३८ ११. वही, भा. ३, चू.पृ. १३६ (गा. ३१७० की चू.)
१२. वही, भा. ४, पृ. १९६,१९७-सरा गालिज्जति......तक्क
वियडादिभावितो धोव्वति। १३. दसवे. ५/२/३६ १४. वही, ५/२/३७,३८ १५. दसवे. अ. चू.पृ. १३४-ससक्खो ण पिबे जणसक्खिगमित्यर्थः । १६. दसवे. हा. टी. पृ. १८८-अन्ये तु ग्लानापवादविषयमेतत्
सूत्रमल्पसागारिकविधानेन व्याचक्षते। १७. ठाणं ३/३४९ १८. निभा. गा. ६०३२-६०३९ १९. वही, भा. ४ चू. पृ. २२३ (गा. ६०४० की चू.) २०. वही, पृ. २२३-मज्जस्स हेट्ठा....सुराए किणिमादिकिट्टिसं
पक्कसं।