Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
निसीहज्झयणं
२६. सदसरायं तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअट्ठ सहेडं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं चत्तारि मासा ।।
२७. चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं सवीसतिराया चत्तारि मासा ॥
सवीसतिरायं चाउम्मासिय परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता
लज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं सदसराया पंच मासा ॥
२८.
२९. सदसरायं पंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअट्टं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं
छम्मासा ॥
४५३
सदशरात्रं त्रैमासिकं परिहारस्थानं प्रस्थापितः अनगारः अन्तरा द्वैमासिकं परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत् अथापरा विंशतिरात्रिकी आरोपणा आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम् अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं चत्वारो
मासाः ।
चातुर्मासिकं परिहारस्थानं प्रस्थापितः अनगारः अन्तरा द्वैमासिक परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत् अथापरा विंशतिरात्रिकी आरोपणा आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम् अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं सविंशतिरात्राः चत्वारो मासाः ।
सविंशतिरात्रं चातुर्मासिकं परिहारस्थानं प्रस्थापितः अनगारः अन्तरा द्वैमासिकं परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत् अथापरा विंशतिरात्रिकी आरोपणा आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम् अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं सदशरात्राः पंचमासाः ।
सदशरात्रं पाञ्चमासिकं परिहारस्थानं प्रस्थापितः अनगारः अन्तरा द्वैमासिकं परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत् अथापरा विंशतिरात्रिकी आरोपणा आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम् अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं षण्मासाः ।
उद्देशक २० : सूत्र २६-२९
२६. तीन मास दस रात के परिहारस्थान में प्रस्थापित अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित हेतुसहित कारणसहित बीसरात्रिकी आरोपणा दी जाए। न्यून अधिक आरोपणा न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर चार मास की प्रस्थापना होती है।
२७. चातुर्मासिक परिहारस्थान में प्रस्थापित अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित बीसरात्रिकी आरोपणा दी जाए। न्यून - अधिक आरोपणा न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर चार मास बीस रात की प्रस्थापना होती है ।
२८. चार मास बीस रात के परिहारस्थान में प्रस्थापित अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित बीसरात्रिकी आरोपणा दी जाए। न्यूनअधिक आरोपणा न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर पांच मास दस रात की प्रस्थापना होती है।
२९. पांच मास दस रात के परिहारस्थान में प्रस्थापित अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित बीसरात्रिकी आरोपणा दी जाए। न्यूनअधिक आरोपणा न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर छह मास को प्रस्थापना होती है।"