Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
मूल
सई पडिसेवणा-पदं
१. जे भिक्खू मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स
दोमासियं ॥
२. जे भिक्खू दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स
मासियं ॥
३. जे भिक्खू तेमासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स तेमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं ॥
४. जे भिक्खू चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स
पलिउंचियं
चाउम्मासियं, आलोएमाणस्स पंचमासियं ॥
५. जे भिक्खू पंचमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा,
वीसइमो उद्देसो : बीसवां उद्देशक
कृ
सकृत् प्रतिसेवन-पदम्
यो भिक्षुः मासिकं परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत्, अपरिकुञ्चितम् आलोचयतः मासिकम्, परिकुञ्चितम् आलोचयतः द्वैमासिकम् ।
यो भिक्षुः द्वैमासिकं परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत्, अपरिकुञ्चितम् आलोचयतः द्वैमासिकम्, परिकुञ्चितम् आलोचयतः त्रैमासिकम् ।
यो भिक्षुः त्रैमासिकं परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत्, अपरिकुञ्चितम् आलोचयतः त्रैमासिकम्, परिकुञ्चितम् आलोचयतः चातुर्मासिकम्।
यो भिक्षुः चातुर्मासिकं परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत्, अपरिकुञ्चितम् आलोचयतः
चातुर्मासिकम्, आलोचयतः
परिकुञ्चितम् पाञ्चमासिकम् ।
यो भिक्षुः पाञ्चमासिकं परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत्, अपरिकुञ्चितम्
हिन्दी अनुवाद
सकृत् प्रतिसेवना-पद
१. जो भिक्षु मासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, निश्छल भाव से आलोचना करने वाले को मासिक और छलपूर्वक आलोचना करने वाले को द्वैमासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है ।
२. जो भिक्षु द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, निश्छल भाव से आलोचना करने वाले को द्वैमासिक और छलपूर्वक आलोचना करने वाले को त्रैमासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है ।
३. जो भिक्षु त्रैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, निश्छल भाव से आलोचना करने वाले को त्रैमासिक और छलपूर्वक आलोचना करने वाले को चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।
४. जो भिक्षु चातुर्मासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, निश्छल भाव से आलोचना करने वाले को चातुर्मासिक और छलपूर्वक आलोचना करने वाले को पाञ्चमासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।
५. जो भिक्षु पाञ्चमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है,