Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 429
________________ उद्देशक १७: सूत्र १०१-१०६ निसीहज्झयणं ३८८ वा प्रघर्षयन्तं वा स्वदते। आघंसावेंतं वा पघंसावेंतं वा सातिज्जति॥ अथवा प्रघर्षण करवाने वाले का अनुमोदन करता है। १०१. जे निग्गंथे निग्गंथीए दंते यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः दन्तान् १०१. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा से निर्ग्रन्थी के दांतों का उत्क्षालन करवाता उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उत्क्षालयेद् वा प्रधावयेद् वा, है अथवा प्रधावन करवाता है और उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा उत्क्षालयन्तं वा प्रधावयन्तं वा स्वदते। उत्क्षालन अथवा प्रधावन करवाने वाले का सातिज्जति॥ अनुमोदन करता है। १०२. जे निग्गंथे निग्गंथीए दंते यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः दन्तान् अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा फुमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फुमातं. 'फुमावेज्ज' (फूत्कारयेद्) वा रञ्जयेद् वा रयातं वा सातिज्जति।। वा, 'फुमातं' (फूत्कारयन्तं) वा रजयन्तं वा स्वदते। १०२. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थी के दांतों पर फूंक दिलवाता है अथवा रंग लगवाता है और फूंक दिलवाने अथवा रंग लगवाने वाले का अनुमोदन करता है। ओष्ठ-पद उट्ठ-पदं ओष्ठ-पदम् १०३. जे निग्गंथे निग्गंथीए उढे यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः ओष्ठौ अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा ___ अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमार्जयेद् वा प्रमार्जयेद् वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा आमार्जयन्तं वा प्रमार्जयन्तं वा स्वदते। सातिज्जति॥ १०३. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थी के ओष्ठ का आमार्जन करवाता है अथवा प्रमार्जन करवाता है और आमार्जन अथवा प्रमार्जन करवाने वाले का अनुमोदन करता है। १०४. जे निग्गंथे निग्गंथीए उद्धे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति॥ यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः ओष्ठौ १०४. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा से निर्ग्रन्थी के ओष्ठ का संबाधन करवाता संवाहयेद् वा परिमर्दयेद् वा, संवाहयन्तं है अथवा परिमर्दन करवाता है और संबाधन वा परिमर्दयन्तं वा स्वदते। अथवा परिमर्दन करवाने वाले का अनुमोदन करता है। १०५. जे निग्गंथे निग्गंथीए उढे यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः ओष्ठौ १०५. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा तैलेन से निर्ग्रन्थी के ओष्ठ का तैल, घृत, वसा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा वा घृतेन वा वसया वा नवनीतेन वा अथवा मक्खन से अभ्यंगन करवाता है णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा अभ्यञ्जयेद् वा म्रक्षयेद् वा, अथवा म्रक्षण करवाता है और अभ्यंगन मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा ___अभ्यञ्जयन्तं वा म्रक्षयन्तं वा स्वदते । अथवा म्रक्षण करवाने वाले का अनुमोदन मक्खावेंतं वा सातिज्जति॥ करता है। १०६. जे निग्गंथे निग्गंथीए उद्धे __ यो निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थ्याः ओष्ठौ १०६. जो निर्ग्रन्थ अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा से निर्ग्रन्थी के ओष्ठ पर लोध, कल्क, चूर्ण लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा लोध्रेण वा कल्केन वा चूर्णेन वा वर्णेन वा अथवा वर्ण का लेप करवाता है अथवा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उल्लोलयेद् वा उद्वर्तयेद् वा, उद्वर्तन करवाता है और लेप करवाने

Loading...

Page Navigation
1 ... 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572